प्रथम विश्वयुद्ध के कारण | Causes of First World War in Hindi

प्रथम विश्वयुद्ध के कारण

परिचय

प्रथम विश्वयुद्ध 28 जुलाई,1914 से 11 नवंबर,1918 तक चला। इसमें लगभग 37 देशों ने भाग लिया। ये देश गुटों में विभाजित थे – प्रथम गुट मित्र तथा संयुक्त राष्ट्रों का था, जिसमें – इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, सर्बिया, इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, पुर्तगाल, रुमानिया आदि शामिल थे। जबकि दूसरा गुट केंद्रीय शक्तियों का था, जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, बुल्गेरिया तथा तुर्की थे। इन दोनों गुटों में शामिल देशों में अस्त्र-शस्त्र की प्रतिस्पर्धा लगी हुई थी। फ्रांस-प्रशा युद्ध, बर्लिन सम्मेलन, बुल्गेरिया का प्रश्न, त्रिराष्ट्र संधि का जन्म, रूस-जर्मन विवाद, इंग्लैंड-जर्मन नाविक प्रतिस्पर्धा, पूर्व की समस्या, साम्राज्यवाद की भावना, बाल्कन विवाद, मोरक्को संकट आदि घटनाओं ने विश्व को प्रथम विश्वयुद्ध की ओर अग्रसर किया। 28 जून,1914 को आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डीनेंड तथा उसकी पत्नी सोफिया की हत्या से ऑस्ट्रिया तथा सर्बिया के मध्य, जो युद्ध शुरू हुआ, वह धीरे-धीरे विश्व युद्ध में बदल गया।

प्रथम विश्व युद्ध के प्रमुख कारण

  1. राष्ट्रीयता की भावनाः फ्रांस की राज्य-क्रान्ति के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ था, किंतु इस राष्ट्रीयता का तेजी से विकास वियना कांग्रेस के पश्चात् ही संभव हुआ। इसी राष्ट्रीयता की भावना के परिणामस्वरूप इटली और जर्मनी का एकीकरण हुआ। राष्ट्रवाद ने एक तरफ तो राष्ट्रों के निर्माण को प्रेरित किया परंतु दूसरी ओर उग्र राष्ट्रवाद के कारण पारस्परिक मतभेद भी सामने आये। ‘देशभक्ति’ की बढ़ती हुई विकृत विचारधारा ने विभिन्न राष्ट्रों के बीच घृणा एवं द्वेष उत्पन्न कर ‘राष्ट्रवाद’ को रणोन्मादी बना दिया। राष्ट्रीयता की यह प्रवर्ती माँग कर रही थी, कि ‘एक राष्ट्रीयता एक राज्य’ के सिद्धान्त के अनुसार यूरोप के राजनीतिक मानचित्र का पुनः निर्धारण हो । इस प्रकार राष्ट्रीयता की भावना के कारण विश्व के कई देशों के मध्य कड़वाहट बढ़ती गई ।
  2. साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा एवं हितों में टकराव : साम्राज्यवादी देशों के मध्य प्रतिस्पर्धा की भावना ने युद्ध के बीज बो दिए थे। 19वीं सदी के अंत तक एशिया और अफ़्रीका के अधिकांश भाग साम्राज्यवादियों के मध्य विभाजित हो चुका था। इस समय एक साम्राज्यवादी देश दूसरे साम्राज्यवादी देश से उनका उपनिवेश छीनने की कोशिश करने में लगा रहता था। जर्मनी ने बर्लिन से बगदाद तक रेल मार्ग निर्माण करने की योजना बनाई जिससे कि पतनोन्मुख ऑटोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण किया जा सके। इस योजना से ब्रिटेन, फ्रांस एवं रूस भयभीत हो गए। इन देशों को भय था कि जर्मनी की इस योजना से उनकी साम्राज्यवादी योजनाओं पर पानी न फिर जाये। फ्रांस ने अफ्रीका के देशों के साथ-साथ मोरक्को को हथिया रखा था। रूस, ईरान तथा कुस्तुनतुनिया सहित ऑटोमन साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों और सुदूर पूर्व की तरफ अपना नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश में था। रूस की महत्वाकांक्षाओं का ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी के उपनिवेशवादी स्वार्थ से टकराव हुआ। सन् 1870 ई. में जर्मनी ने फ्रांस के दो क्षेत्रों अल्सेस तथा लारेन को छीन लिया था। ये दोनों स्थान लोहे तथा खानों के लिए प्रसिद्ध थे। इन प्रांतों को छीने जाने से फ्रांस को औद्योगिक विकास में कठिनाई आ रही थी। अतः दोनों देशों के मध्य टकराव की स्थिति पैदा हो गई। इसी प्रकार रूस तथा ऑस्ट्रिया के बीच निकट पूर्व में हितों में टकराव था। ब्रिटेन तथा जर्मनी के बीच भी व्यापारिक तथा नौसैनिक प्रतिद्वंदिता थी। इस प्रकार विभिन्न राष्ट्रों के मध्य साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा एवं हितों में टकराव ने प्रथम विश्व युद्ध के कारण के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  3. विभिन्न यूरोपीय देशों का दो गुटों में बट जाना : प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व यूरोप के विभिन्न देश दो गुटों में बट चुके थे। जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी तथा इटली त्रिराष्ट्रीय संघ में शामिल थे । जबकि दूसरी तरफ 1907 में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने त्रिदेशीय संधि का निर्माण किया। इन दोनों गुटों के बीच निरंतर नए समीकरण बनते थे जिससे युद्ध की आशंका को और भी बल मिलता था।
  4. सैन्यवाद (एक मजबूत सैन्य आधार कायम रखने की नीति) : 1870 के बाद से ही सभी देशों ने सेना के निर्माण पर अत्याधिक धन खर्च किया साथ ही इन देशों के बीच सेना के आधुनिकीकरण के लिए होड़-सा लग गया। जिससे यूरोप क्रमशः एक सशस्त्र सैन्य शिविर के रूप में बदलता गया। इस प्रकार सैन्यवाद ने तनाव को बढ़ाने में और भी योगदान दिया।
  5. समाचार पत्रों व प्रेस द्वारा लोकमत को जहरीला बनाना : समाचार पत्रों के द्वारा लगभग सभी यूरोपीय देशों में लोगमत को जहरीला बना देना भी प्रथम विश्व युद्ध का एक मूल कारण था। समाचार पत्र: अक्सर विदेशी राष्ट्रों की स्थिति को तोड़-मरोड़कर पेश करने एवं काल्पनिक विवरण देकर राष्ट्रवादी भावनाओं को उत्तेजित कर रहे थे। इन सभी समाचार पत्रों अपने-अपने देशों में दूसरे देशों के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण लोकमत का निर्माण करके युद्ध को देर-सवेर अनिवार्य कर दिया ।
  6. कुटनीतिक एवं गुप्त सन्धिया : कुटनीतिक एवं गुप्त सन्धियों को भी प्रथम विश्वयुद्ध के मूल कारणों में स्वीकार किया जाता है। विभिन्न देशों के राजनीतिज्ञों ने परस्पर गुप्त समझौते करके ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी जिनसे एक और तो भ्रांतिपूर्ण आशाएं उत्पन्न हो गई तथा दूसरी ओर अनावश्यक आकांक्षाएं। इन आशाओं तथा आकांक्षाओं ने युद्ध के लिए अत्यंत प्रभावशाली पृष्ठभूमि तैयार की।
  7. राजनीतिज्ञों के अनुत्तरदायित्वपूर्ण उत्तेजक वक्तव्य और नीतियां : प्रथम विश्वयुद्ध के लिए रूस, फ्रांस, सर्बिया, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इंग्लैंड के राजनीतिज्ञ भी उत्तरदायी थे। उन्होंने युद्ध की स्थिति का सामना करने को तैयार रहने के लिए सैन्यवादी नीति अपनाई। सैन्य शक्ति में विस्तार के कारण हर देश के राजनीतिक तथा सैन्य नेताओं ने कुछ ऐसी बातें की, धमकियों और चेतावनियों की ऐसी भाषा का प्रयोग किया जिसका परिणाम लामबंदियों एवं युद्ध की घोषणाओं के रूप में सामने आया।
  8. प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संस्था का अभाव : यूरोप में इस समय तक कोई ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था नहीं थी, जो पारस्परिक वार्तालाप के माध्यम से विभिन्न राष्ट्रों के समस्याओं का समाधान करके युद्ध की संभावना को टाल देती। यद्यपि अंतरराष्ट्रीय कानून तथा सदाचार संहिता थी, लेकिन इन्हें लागू कराने वाली शक्ति का अभाव था। सन् 1899 और 1907 के हेग सम्मेलनों में इस तरह की संहिता की रचना की दिशा में विशेष प्रगति की गई थी, किन्तु उसको कार्यान्वित करने के लिए किसी प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना नहीं की जा सकी। प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन का यह अभाव प्रथम विश्व युद्ध का महत्वपूर्ण कारण था।
  9. युद्ध से पूर्व की घटनाएं तथा युद्ध का तात्कालिक कारण : प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने से पूर्व कुछ घटनाएं इस प्रकार से घटी जिससे यूरोप के विभिन्न देशों के मध्य तनाव बढ़ता गया। मोरक्को का प्रश्न जर्मनी तथा फ्रांस के मध्य टकराव की स्थिति को बढ़ा रहा था। इसी प्रकार ऑस्ट्रिया-हंगरी ने बोस्निया और हर्जेगोविना नामक ओटोमन प्रांतों पर कब्ज़ा कर रखा था। इन प्रांतों पर सर्बिया की भी दृष्टि लगी हुई थी। रूस सर्बिया को समर्थन दे रहा था, जबकि जर्मनी ऑस्ट्रिया फलतः युद्ध की स्थिति पर तैयार थे।
    इसी परिस्थिति में 28 जून,1914 को बोस्निया के सेराजेवो नगर में एक छात्र गेवरीली प्रिंसिप जिसे सर्बिया की आतंकवादी संस्था ‘ब्लैक हैंड’ का सहयोग प्राप्त था, ने ऑस्ट्रिया के युवराज फर्डीनेंड तथा उसकी पत्नी सोफिया की बोस्निया यात्रा के दौरान हत्या कर दी। इससे ऑस्ट्रिया को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध करने का बहाना मिल गया। देखते ही देखते इस युद्ध ने प्रथम विश्व युद्ध का रूप धारण कर लिया।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते है की, प्रथम विश्वयुद्ध के कई कारण थे, लेकिन किसी को भी अकेले पर्याप्त कारण के रूप में उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है । इस भयावह युद्ध के लिए कोई भी अकेली व्याख्या संभवत बहुत ही साधारण हो सकती है । 19वीं सदी के अंत तक तथा 20वीं सदी के आरंभ में यूरोप दो परस्पर गुटों में बट चूका था। इन दोनों गुटों के बीच इस दौरान कई मोर्चों पर अनेक लड़ाइयां लड़ी गई। जो मुख्य रूप से उग्र राष्ट्रीयता की भावना, गुप्त संधियों की प्रणाली, सैन्यवाद और शस्त्रीकरण, आर्थिक प्रतिद्वंदिता और साम्राज्यवाद के परिणाम स्वरूप हुई। इन्ही परिस्थतियों के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों को निश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों का अभाव, समाचार पत्रों की भूमिका तथा तात्कालिक कारण के रूप में फर्डीनेंड की हत्या ने इस युद्ध को सुनिश्चित कर दिया।

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

इन्हें भी पढ़ें –

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!