तुलनात्मक राजनीति : अर्थ, विकास, महत्व, प्रकृति, क्षेत्र एवं सीमाएं | Comparative Politics: Meaning, Development, Significance, Nature, Areas and Limitations in Hindi

तुलनात्मक राजनीति : अर्थ, विकास, महत्व, प्रकृति, क्षेत्र एवं सीमाएं

परिचय                                                                            

21वीं शताब्दी में तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण का जो रूप आज हमारे सामने है, वह एक लंबे घटनाक्रम का परिणाम है और इस समय अवधि में उसे सैकड़ों उतार-चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ा है। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह परिपूर्णता को प्राप्त कर चुका है। हम यह जरूर कह सकते है कि तुलनात्मक राजनीति संक्रमण काल की अवस्था में है। आज भी तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति एवं क्षेत्र में लगातार विकास, बदलाव एवं असंतोष की स्थिति बनी हुई है। वैश्वीकरण के इस दौर में विश्व के तमाम देशों में पारस्परिक सहयोग एवं निर्भरता बढ़ी है। आज किसी भी राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय विषय को केवल सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता है और न ही किसी समस्या को सिर्फ स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुलझाया जा सकता है। एक स्थानीय समस्या वैश्विक समस्या का रूप धारण कर सकती है तथा एक वैश्विक समस्या स्थानीय स्तर की राजनीति या अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। उदाहरणस्वरूप चीन के वुहान शहर से निकला कोरोना वायरस देखते ही देखते वैश्विक चिंता का विषय बन गया तथा विश्व के लगभग तमाम देशों की आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को इसने प्रभावित किया। उपरोक्त वैश्विक घटनाओं के संदर्भ में तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति व क्षेत्र में भी तेजी से परिवर्तन हुए है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत लेख तुलनात्मक राजनीति का अर्थ, उद्भव एवं विकास, महत्व, प्रकृति एवं क्षेत्र तथा इसकी सीमाओं पर चर्चा की गई है।

तुलनात्मक राजनीति का अर्थ

तुलनात्मक राजनीति के अर्थ को समझने से पहले हमें इसका तुलनात्मक सरकार से अंतर क्या है,समझ लेना आवश्यक है। तुलनात्मक सरकार राज्य से संबंधित औपचारिक संस्थाओं का ही मुख्यत: तुलनात्मक अध्ययन होता है। इसके अंतर्गत राजनीतिक व्यवहार से संबंधित सभी प्रक्रियाओं एवं गैर सरकारी संस्थाओं का अध्ययन सम्मिलित नहीं होता है। राजनीति व्यवहार के अनेक पहलू व अनेको गैर शासकीय संस्थाएं, जिनमें सरकारों के व्यवहार का निर्धारण होता है, तुलनात्मक सरकार में सम्मिलित नहीं होते है।

वहीं दूसरी तरफ तुलनात्मक राजनीति का संबंध राजनीतिक व्यवहार की संपूर्णता के अध्ययन से है। इसके अंतर्गत सरकारों एवं राजकीय संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन तो स्वत: ही सम्मिलित रहता है। साथ ही साथ इसमें तुलनात्मक राजनीति के उन प्रभावों एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन भी सम्मिलित रहता है जिसमें सरकारों के व्यवहार का निर्धारण होता है। उदाहरणस्वरूप अब राज्य के स्थान पर नागरिक समाज को तुलनात्मक राजनीति अध्ययन के विषय के रूप में बल दिया जाने लगा है। वैश्वीकरण के युग में बहुत से निर्णय राज्य के स्तर पर नहीं अपितु नागरिक समाज के स्तर पर भी लिए जाने लगे है। तुलनात्मक राजनीति की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित है:-

एडवर्ट ए. फ्रीमैन, “तुलनात्मक राजनीति सरकार के विविध स्वरूपों एवं विविध राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक विश्लेषण है।”

जी.के. रोबर्टस, “तुलनात्मक राजनीति उस व्यापक क्षेत्र का संकेत देती है, जिसमें सरकारी एवं गैर सरकारी, राजनीति-कबीलों, संप्रदायों व गैर राज्य संगठनों की राजनीति का भी अध्ययन किया जाता है।”

रॉल्फ ब्रेबन्ती, “तुलनात्मक राजनीति संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में उन तत्वों की पहचान व व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों एवं उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करती है।”

एम. कर्टिस, “तुलनात्मक राजनीति का संबंध राजनीतिक संस्थाओं की कार्यविधि एवं राजनीतिक व्यवहार की महत्वपूर्ण निरंतरताओं, समानताओं तथा असमानओं से है।”

इस प्रकार हम कह सकते है कि तुलनात्मक राजनीति, राजनीतिक संस्थाओं एवं राजनीतिक व्यवहार की समानताओं व असमानताओं के अध्ययन से संबंधित है।

तुलनात्मक राजनीति का उद्भव/विकास यात्रा

तुलनात्मक राजनीति का इतिहास लगभग उतना ही पुराना है जितना राजनीतिक चिंतन का। इसके सर्वप्रथम विचारक होने का श्रेय अरस्तु को जाता है, जिन्होंने राजनीतिशास्त्र को अन्य सामाजिक शास्त्रों से पृथक कर एक स्वतंत्र विषय के रूप में इसे स्थापित किया। अरस्तू ने तत्कालीन विश्व में प्रचलित 158 संविधानों का आगमनात्मक पद्धति द्वारा तुलनात्मक अध्ययन किया। अरस्तु ने अपनी पुस्तक ‘पॉलिटिक्स’ में सरकारों के वर्गीकरण के लिए सुनिश्चित आधार बताएं और तुलनात्मक पद्धति को प्रचलित किया।

आधुनिक काल में तुलनात्मक राजनीति का आरंभ पुनर्जागरण काल से माना जाता है और मैक्यावली को पुनर्जागरण काल का शिशु। उनकी पुस्तक ‘प्रिंस’ में तुलनात्मक राजनीति अध्ययन की छाप स्पष्टत: दिखाई देती है। मैक्यावली ने ‘राज्य-कला’ एवं ‘शासन-कला’ के अध्ययन पर बल दिया एवं राजनीति पद्धति में अनुभववाद व इतिहासवाद का समन्वय किया। इसी क्रम में अगला नाम मोंटेस्क्यू का आता है। मोंटेस्क्यू ने ‘अनुभूतिमूलक दृष्टिकोण’ और ‘ऐतिहासिक पद्धति’ को अपनाया।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि परंपरावादी राजनीतिशास्त्र के अंतर्गत ‘विदेशी संविधानों का अध्ययन’ अथवा ‘विदेशी सरकारों का अध्ययन’ जैसे विषयों पर बल दिया जाता था। इसका अध्ययन क्षेत्र अत्यंत संकुचित था। इसमें केवल पश्चिमी यूरोप या कहें कि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड इत्यादि देशों की राजनीतिक संस्थाओं का ही उल्लेख मिलता है। इस अध्ययन शाखा के अधिकांश विद्वानों की एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीकी द्वीपों के देशों में कोई रुचि नहीं थी। इसके अंतर्गत मूल्यों पर बल दिया गया एवं राजनीतिक व्यवस्था के अनौपचारिक एवं व्यवहारिक तत्व जैसे दबाव समूह, जनमत एवं राजनीतिक व्यवहार जैसे गतिशील तत्वों की उपेक्षा की गई और इसके अध्ययन की शैली वर्णनात्मक तथा संवैधानिक रही है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपनिवेशवाद का अंत हो गया एवं तुलनात्मक राजनीति में एक निश्चित मोड़ आया तथा यह अनुशासन व्यवस्थित और वैज्ञानिक बना। अब इसमें गैर-पाश्चात्य एवं विकासशील व्यवस्थाओं का भी अध्ययन होने लगा। इसमें वैज्ञानिक सटीकता का समावेश हुआ एवं राजनीति के व्यापक परिवेश के प्रति चिंता बढ़ी तथा नवीन अध्ययन पद्धति अपनाई जाने लगी। अब संपूर्ण विश्व की राजनीतिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक संरचनाओं एवं राजनीतिक व्यवहारों की व्यापक एवं वृहत परिवेश में तुलनाएं होने लगी।

तुलनात्मक राजनीति का महत्व

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में यह शाखा सदैव ही आकर्षण का केंद्र रहा है। अरस्तु से लेकर आज तक अध्ययन की यह शाखा निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण रहा है।

  • राजनीति व्यवहार का ज्ञान : तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से हमें राजनीतिक व्यवहार एवं इसकी जटिलताओं को समझने में सहायता मिलती है। इसके माध्यम से हम राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय राजनीति तथा राजनीति व्यवहार पर अच्छी समझ बना सकते है।
  • राजनीति का वैज्ञानिक अध्ययन : तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन राजनीति को एक ‘वैज्ञानिक अध्ययन’ बनाने में सहायक है। तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से वैज्ञानिक निष्कर्ष प्राप्त किए जा सकते है।
  • विभिन्न देशों की संस्थाओं का ज्ञान : तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के माध्यम से हम देश विशेष की संस्थाओं को अधिक गहराई से समझकर उपस्थित समस्याओं का हल ढूंढ सकते है। विदेशी राजनीतिक संस्थाओं एवं उनसे संबंधित राजनीति के अध्ययन से हमारा दृष्टिकोण व्यापक, तुलनात्मक व संतुलित बनता है, जो किसी देश विशेष के संस्थाओं के अध्ययन के संदर्भ में विशेष महत्व रखता है।
  • सिद्धांत निर्माण में उपयोगी : तुलनात्मक राजनीति का महत्व राजनीति में सिद्धांत निर्माण के दृष्टिकोण से भी उपयोगी है। राजनीतिशास्त्र में प्राचीन काल से ही ऐसे सिद्धांतों एवं सामान्य नियमों की खोज की जाती रही है जिसके माध्यम से भिन्न-भिन्न समाजों के राजनीतिक व्यवहार को समझा जा सके।
  • राजनीतिक सिद्धांतों के पुनर्निरीक्षण में सहायक : तुलनात्मक राजनीति के माध्यम से हम यह जान सकते है कि प्रचलित या पारंपारिक राजनीतिक सिद्धांत वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों या समस्या में किस सीमा तक उपयोगी या अनुपयोगी सिद्ध हो सकता है।
  • अंत: अनुशासन अध्ययन पद्धति में सहायक : तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में अंत: अनुशासनात्मक अध्ययन पद्धति का प्रयोग किया जाता है। परिणामस्वरूप इसके अध्ययन से सामाजिक विज्ञानों के अन्य विषयों के बारे में एक व्यापक समझ बनती है।

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति/स्वरूप

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति के संदर्भ में राजनीतिक विद्वानों में काफी मतभेद है। इसकी प्रकृति के संदर्भ में मुख्यतः दो दृष्टिकोण पाए जाते है।

  1. तुलनात्मक राजनीति का लम्बात्मक (Vertical) स्वरूप या प्रकृति : इस मत में विश्वास रखने वाले विचारको के अनुसार तुलनात्मक राजनीति एक ही देश में स्थित विभिन्न स्तरों पर स्थापित सरकारों का विश्लेषण एवं अध्ययन है। इसमें राष्ट्रीय, प्रांतीय तथा स्थानीय सरकारों की परस्पर तुलना को महत्व दिया जाता है।

इस दृष्टिकोण के आलोचकों का मत है कि यह दृष्टिकोण तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि इसके अंतर्गत राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन पर ही अधिक बल दिया जाता है। अत: इसके आधार पर राजनीतिक व्यवहार की जटिलताओं को नहीं समझा जा सकता।

  1. तुलनात्मक राजनीति का क्षैतिज (Horizontal) प्रकृति : इस मत में विश्वास रखने वाले विचारकों के अनुसार तुलनात्मक राजनीति राष्ट्रीय सरकारों का क्षैतिज तुलनात्मक अध्ययन है। इस धारणा के अनुसार तुलना दो प्रकार से हो सकती है; प्रथम, एक ही देश में विद्यमान राष्ट्रीय सरकार की विभिन्न कालों के आधार पर तुलना और द्वितीय, विश्व में विद्यमान राष्ट्रीय सरकारों की तुलना हो सकती है।

समकालीन विश्व में राजनीति के अध्ययन में संपूर्ण विश्व की राष्ट्रीय सरकारों की क्षैतिज तुलना पर बल दिया जाने लगा है। इस अध्ययन पद्धति के माध्यम से राजनीतिक व्यवहार की बारीकियों को समझा जा सकता है तथा कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जा सकते है।

तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र

तुलनात्मक राजनीति के विषय क्षेत्र का सीमांकन अभी तक नहीं हो सका है। यह एक ऐसा विषय है जो संक्रमण काल की अवस्था से गुजर रहा है। तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में परंपरागत और आधुनिक विचारको के बीच मतांतर पाया जाता है। तुलनात्मक राजनीति के परंपरागत विद्वान अपने अध्ययन को केवल राज्य एवं सरकार के ढांचे तक सीमित रखते थे, वहीं दूसरी तरफ आधुनिक विद्वानों के विचार में इसका विशेष क्षेत्र दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इसमें नए-नए विषयों एवं पद्धतियों का समावेश लगातार होता जा रहा है। जीन ब्लांडेल ने इस मतभेद को दो रूपों में व्यक्त किया है।

  1. प्रथम, सीमा संबंधी विवाद;
  2. द्वितीय, मानक एवं व्यवहार संबंधी विवाद।
  • सीमा संबंधी विवाद : इस संदर्भ में परंपरावादी राजनीतिक वैज्ञानिकों ने कानूनी दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए इस बात पर बल दिया है कि तुलनात्मक राजनीति के अंतर्गत केवल संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं एवं संविधान द्वारा निर्धारित राजनीतिक व्यवहार का ही अध्ययन किया जाना चाहिए। इसके विपरीत व्यवहारवादी दृष्टिकोण के समर्थक राजनीति के व्यवहारिक पक्ष को ही प्रमुख मानते हुए कहते है कि तुलनात्मक राजनीति का लक्ष्य सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के राजनीतिक व्यवहार के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालना है।
  • मानक एवं सीमा संबंधी विवाद : मानक का अर्थ संविधान द्वारा निर्धारित नियमों से है तथा व्यवहार से तात्पर्य उनके वास्तविक कार्यकारण से। एक तरफ परंपरागत विचारक संवैधानिक मनकों को महत्वपूर्ण मानते है, वहीं तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक विचारक मानक की अपेक्षा वास्तविक राजनीतिक व्यवहार को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है। व्यवहारिक धरातल पर प्राय: देखा जाता है कि वास्तविक राजनीतिक व्यवहार संवैधानिक प्रावधानों से मेल नहीं खाते है।

 उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र सीमांकन के अभाव में बहुत ही विवादास्पद है। इसमें सबसे मूल समस्या यह है कि तुलनात्मक राजनीति में क्या-क्या विषय शामिल किया जाएं और क्या नहीं। साधारणत: तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के अंतर्गत संविधान, दबाव समूह, राजनीतिक दल, कार्यपालिका, विधायिका, निर्वाचन, लोक प्रशासन इत्यादि का विश्लेषण किया जा सकता है।

आजकल तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के क्षेत्र में पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ-साथ एशियाई, अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी एवं तृतीय विश्व के विकासशील देशों की राजनीतिक प्रणालियां भी इसके अध्ययन क्षेत्र का मुख्य भाग है एवं इसमें अंत: अनुशासनात्मक उपागम पर भी बल दिया जा रहा है।

 तुलनात्मक राजनीति अध्ययन की सीमाएं/बाधाएं

  • पर्याप्त सूचना का अभाव : राजनीतिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं के मध्य तुलना हेतु सूचना एवं तथ्यों की आवश्यकता होती है। जबकि कई देशों से सूचनाएं एकत्रित करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे तुलना करना कठिन हो जाता है। यद्यपि उदारवादी लोकतांत्रिक देशों (अमेरिका, ब्रिटेन) में चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया जैसे देशों की अपेक्षा सूचनाओं की उपलब्धता सरल है।
  • चर/कारकों की अधिकता : राजनीतिक प्रणालियों के तुलनात्मक विश्लेषण के लिए अनेक कारकों की आवश्यकता होती है, जो राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण में सहायक होती है। इसमें आर्थिक, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक कारक प्रमुख है। राजनीतिक क्रिया एवं प्रक्रिया में सैकड़ों मतदाताओं, प्रशासकों एवं नेताओं का सक्रिय योगदान रहता है। कई बार सामाजिक एवं आर्थिक कारक सांस्कृतिक कारको में इतना घुल मिल जाते है कि किसी सामान्य निष्कर्ष तक पहुंचना कठिन हो जाता है।
  • मानक और व्यवहार में अंतर : तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन अत्याधिक कठिन इसलिए भी होता है, क्योंकि इसका सरोकार मानक और व्यवहार दोनों से है। विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों का स्वरूप कैसा है या विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों का स्वरूप कैसा हो सकता था… आदि सवालों में बहुत अंतर होता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो सिद्धांत और व्यवहार में बहुत अंतर होता है। उदाहरणस्वरूप कहे तो अधिकतर देशों के संविधान में जिन आदर्शों पर जोर दिया जाता है, व्यवहारिक राजनीति में उन्हें इतना महत्व नहीं दिया जाता है।

 निष्कर्ष

उपरोक्त चर्चा के आधार पर कहा जा सकता है कि तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण से हम देश विशेष की संस्थाओं का गहराई से अध्ययन करके उपस्थित समस्याओं का हल ढूंढ सकते है। इसके द्वारा छात्र, शिक्षक, राजनीतिक विद्वान, राजनीतिज्ञ एवं नौकरशाहों को उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है। इस अध्ययन पद्धति के माध्यम से राजनीतिक व्यवहार को समझने, राजनीतिशास्त्र को विज्ञान बनाने तथा आनुभाविक अध्ययनों के आधार पर सिद्धांत निर्माण, इसकी औचित्यता एवं प्रमाणिकता जांचने में सहायता मिलती है। वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य में राजनीतिक व्यवस्था एवं व्यवहार के बारे में सामान्य नियमों का निर्धारण करना अत्यंत आवश्यक हो गया है, ताकि सामान्य राजनीतिक सिद्धांतों का निर्माण कर राजनीतिक व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान किया जा सके।

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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