मैक्स वेबर : नौकरशाही | Bureaucracy by Max Weber in Hindi

मैक्स वेबर : नौकरशाही (Max Weber : Bureaucracy)

परिचय

मैक्स वेबर नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले प्रथम जर्मन समाजशास्त्री थे। इनका योगदान समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास तथा राजनीति विज्ञान में प्रमुख रहा। नौकरशाही के अध्ययन में वेबर केन्द्रीय स्थान रखते हैं। इन्होंने सैद्धांतिक ढांचे के रूप में नौकरशाही का अध्ययन किया। वेबर ने अपनी पुस्तक ‘सामाजिक और आर्थिक संगठन का सिध्दांत’ (The Theory of Economic and Social Organizations) में नौकरशाही के आदर्श प्रकार का वर्णन किया। जिसके अंतर्गत नौकरशाही को प्रशासन के तर्कपूर्ण (Rational) व्यवस्था माना है। उन्होंने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया तथा यह माना कि नौकरशाही सिद्धांत प्रभुत्व के सिद्धांत का ही एक अंग है। उनके इन विचारों ने नौकरशाही सिद्धांत को दीर्घ रूप में उल्लेखित किया। वेबर का मानना था कि नौकरशाही संगठन के प्रशासन और स्थापना में प्रभावी ढंग से सहायता करती है।

मैक्स वेबर का जन्म 21 अप्रैल, 1864 में पश्चिमी जर्मनी के कपड़ा निर्माण से जुड़े एक व्यवसायिक परिवार में हुआ। सन् 1882 में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने हीडलवर्ग (Heidelberg)  विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। कानून में डॉक्टरेट के बाद बर्लिन विश्वविद्यालय में कानूनी प्रशिक्षक/प्राध्यापक के पद पर कार्य किया। सन् 1920 में इनका निधन हो गया। वेबर एक  प्रगतिशील दृष्टिकोण के व्यक्ति थे, अत: उन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्य ध्यान विश्लेषणात्मक तथा व्यवस्थित अध्ययन कर दिया। वह सदैव व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने पर बल देते थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल है ….

  • ‘द थ्योरी ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल ओर्गनाइजेशन’ (The Theory of Economic and Social Organizations),
  • ‘जनरल इकोनॉमिक हिस्ट्री’ (General Economic History) तथा
  • ‘प्रोटेस्टेंट एथिक एंड स्प्रिट ऑफ कैपिटलिज्म’ (Protestant Ethic and Spirit of Capitalism)

नौकरशाही : अर्थ

नौकरशाही का सामान्य अर्थ ‘डेस्क सरकार’ (Desk Government/ फ्रेंच में ब्यूरों का अर्थ है-डेस्क) है। फ्रांसीसी नागरिक विंसेंट डी गार्नी  प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने सन् 1745 में नौकरशाही शब्द को प्रस्तुत किया।  उनके पश्चात अनेक फ्रांसीसी लेखक नौकरशाही शब्द को लोकप्रिय बनाने में शामिल रहे, लेकिन एक अवधारणा के रूप में नौकरशाही का प्रयोग 19वीं शताब्दी में किया गया। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे. एस. मिल तथा मोस्का और मिशेल जैसे समाजशास्त्रियों ने भी व्यापक रूप से नौकरशाही पर लिखा। वेबर के लिए नौकरशाही ‘अधिकारियों का एक प्रशासनिक निकाय’ है, जिसके अंतर्गत संगठनों में कार्यकुशलता को प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। उनकी मान्यता थी कि आधुनिक समय में अत्यधिक आर्थिक प्रतिस्पर्धा है जिसके तहत पूंजीवादी संगठनों में एक अधिक कुशल संगठन प्रणाली की आवश्यकता थी। नौकरशाही के सिद्धांतों ने संगठन को आर्थिक योजना के साथ आगे बढ़ने तथा बाजार में स्थिरता बनाए रखने का मार्ग प्रशस्त किया। वेबर ने अध्ययन किया कि “नौकरशाही के विकास में पूंजीवादी व्यवस्था ने निर्विवाद रूप से प्रमुख भूमिका निभाई है। हालाँकि इसके बिना पूंजीवादी अर्थव्यवस्था आगे नहीं बढ़ सकता। इसका विकास अधिकांश रूप से पूँजीवादी तत्वावधानों के अंतर्गत हुआ है तथा इसे एक स्थिर, कठोर, गहन और गुणात्मक प्रशासन की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित किया गया”

मैक्स वेबर : प्राधिकार

वेबर ने नौकरशाही को एक समाजशास्त्रीय परिघटना के रूप में समझाने  का प्रयत्न किया। जहां प्रभुत्व के सिद्धांत को समान्य संदर्भ में समझा जा सकता है। प्रभुत्व मुख्य रूप से एक ‘शक्ति संबंध’ को संदर्भित करता है, जो शासक तथा शासित के बीच सत्ता की अधिनायकवादी शक्ति है। परंतु इस शक्ति को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब यह न्यायसंगत तथा वैध हो। शक्ति उस समय प्राधिकार में परिवर्तित हो जाती है जब यह वैधता प्राप्त कर लेती है, जहां व्यक्ति स्वेच्छा से आदेशों का पालन करता है। इस विश्वास के आधार पर वेबर ने तीन प्रकार के वैधताओं की पहचान की। प्रत्येक एक विशेष प्रकार के प्राधिकार के अनुरूप है।

प्राधिकार के प्रकार

  • पारंपरिक प्राधिकार (Traditional authority)
  • करिश्माई प्राधिकार (Charismatic authority)
  • कानूनी तार्किक प्राधिकार (Legal-Rational authority)

 

  • पारंपरिक प्राधिकार : पारंपरिक प्राधिकार अनंत काल से निरंतर वैधता ग्रहण करता है। पारंपरिक प्राधिकार का आधार पम्पराएँ होती है। जो इस प्राधिकार का प्रयोग करते हैं उन्हें स्वामी के नाम से पुकारा जाता है और जो इन स्वामियों की आज्ञा का पालन करते हैं उन्हें अनुयायी/अनुचर कहा जाता है। स्वामी को यह प्राधिकार वंश परंपरा या सामाजिक परंपरा के कारण हासिल होता है। स्वामी की आज्ञा का पालन अनुयायी द्वारा किया जाता है, जो व्यक्तिगत निष्ठा के संबंधों पर आधारित होता है। इस पारंपरिक प्राधिकार में जो भी व्यक्ति आदेशों का पालन करते है वे घरेलू अधिकारी, पारिवारिक रिश्तेदार और स्वामी के चहेते होते है।
  • करिश्माई प्राधिकार : करिश्माई प्राधिकार किसी व्यक्ति के विशिष्ट और अतिमानवीय गुणों पर आधारित होता है। करिश्माई नेता कुछ विशिष्ट गुण रखते हैं जो उन्हें आम आदमी से अलग बनाते हैं। वह एक नायक, मसीहा या भविष्यवक्ता हो सकता है और चमत्कारिक शक्तियों के आधार पर ही उसे स्वीकार किया जाता है तथा इसको वैध प्रणाली का आधार माना जाता है। लोग उसकी आज्ञाओं का पालन बिना किसी पूछताछ के करते हैं। करिश्माई नेता की असाधारण क्षमताओं में शिष्यों की पूर्ण आस्था होती है। हलाँकि उसके पास कोई विशेष योग्यता तथा स्थिति नहीं होती है। इस प्रकार के प्राधिकार में प्रशासनिक तंत्र अस्थिर होता है और नेता की पसंद-नापसंद के अनुसार अनुयायी काम करते हैं।
  • कानूनी तार्किक प्राधिकार : कानूनी तार्किक प्राधिकार के अंतर्गत नियमों को न्यायिक रूप से लागू किया जाता है और यह संगठन के सभी सदस्यों पर लागू होता है। आधुनिक समाज में यह प्राधिकार एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यह कानूनी है क्योंकि यह व्यवस्थित नियमों तथा प्रक्रियाओं पर आधारित है और यह तर्कसंगत भी है। इसकी पूर्ण रूप से व्याख्या भी की गई है। इस प्राधिकार में नौकरशाही प्रशासन का उपकरण होती है। नौकरशाह के पद, शासन से उसके संबंध, शासितों तथा सहकर्मियों के साथ उसके व्यवहार का नियमन अव्यैक्तिक कानूनों द्वारा होता है।

मैक्स वेबर: नौकरशाही की विशेषताएं

वेबर के नौकरशाही मॉडल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • कार्य का विभाजन और विशेषीकरण : कार्य का विभाजन और विशेषीकरण नौकरशाही की प्रमुख विशेषता है। जिसमें कार्यों की प्रकृति के आधार पर संगठन में कार्यों को विभाजित किया जाता है। कार्य का उचित विभाजन कर दिए जाने से संगठन में स्पष्टता रहती है कि कौन से कार्य को किस अधिकारी द्वारा किया जाएगा, जिससे संगठन की उत्पादकता तथा दक्षता में वृद्धि होती है।
  • लिखित नियम द्वारा परिभाषित कार्य : नौकरशाही संगठन में प्रत्येक कार्य लिखित नियमों के आधार पर सम्पन्न किये जाते है। इन लिखित नियमों पर वेबर ने काफी अधिक बल दिया क्योंकि ये नियम संगठन के सदस्यों के व्यवहार पर नियंत्रण रखते है तथा संगठन का संचालन परिभाषित तकनीकी नियमों तथा मानदंडों के आधार नियोजित और नियंत्रित करते है।
  • पदसोपनिक प्राधिकार : पदसोपान की अवधारणा तार्किक प्रकार की नौकरशाही में एक प्रमुख स्थान रखती है। वेबर पदसोपान की व्यवस्था को काफी महत्त्व देते है। पदों का संगठन पदसोपन के क्रम का पालन करता है, जिसके अंतर्गत हर अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्चाधिकारी के नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण के अधीन होता है। यह अवधारणा प्रशासनिक अधिकारियों के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण संबंध स्थापित करती है।
  • योग्यता आधारित चयन : अधिकारीयों की नियुक्ति स्वतंत्र तथा निष्पक्ष आधार पर की जाती है तथा यह चयन संविदात्मक, प्रतियोगी परीक्षाओं एवं योग्यता आधारित होती है।इस व्यवस्था में मूल्यांकन पूरी तरह से उम्मीदवारों की क्षमताओं और प्रदर्शन पर आधारित है।
  • स्थिति के अनुसार औपचारिक सामाजिक संबंध : संगठन के नौकरशाही रूप में अव्यैक्तिकता की अवधारणा का पालन किया जाना चाहिए। यह संबंध तर्कहीन भावनाओं पर नहीं बल्कि, औपचारिक सामाजिक पहलुओं पर आधारित है, जिसमें व्यक्तिगत पसंद तथा नापसंद के लिए कोई स्थान नहीं है। इसमें उच्चाधिकारी से अधीनस्थ अधिकारी को दी गई आज्ञा अवैयक्तिक आदेश पर आधारित होते है।
  • नियमित पारिश्रमिक भुगतान : नौकरशाही में कर्मचारियों के नियमित पारिश्रमिक की व्यवस्था होती है, जो कार्य तथा जिम्मेदारियों की प्रकृति के अनुसार प्रदान किया जाता है। पारिश्रमिक संगठन की आंतरिक पदसोपन के अनुसार दिया जाता है। इसके अलावा वरिष्ठता तथा योग्यता के आधार पर पदोन्नति के माध्यम से करियर में उन्नति की संभावना होती है।
  • स्वामित्व तथा कर्मचारी ढांचे का पृथक्करण : स्वामित्व तथा कर्मचारी ढांचे के बीच पूर्ण पृथक्करण होना चाहिए। व्यक्तिगत मांगों तथा हितों को अलग रखा जाना चाहिए। इनका हस्तक्षेप संगठन की गतिविधियों में नहीं होना चाहिए क्योंकि कोई भी कर्मचारी अपनी स्थिति में संगठन का मालिक नहीं हो सकता।
  • करियर विकास : कर्मचारियों की पदोन्नति वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर आधारित है, प्राधिकरण के विवेक पर नहीं। कर्मचारियों को पदोन्नति वरिष्ठता या उसकी उपलब्धियों के आधार पर प्रदान की जाती है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि वेबर का नौकरशाही सिद्धांत आदर्श, शुद्ध, तटस्थ, कुशल, पदानुक्रम और तर्कसंगत है, जो समकालीन समाज में अपरिहार्य है। वेबर नौकरशाही के ‘आदर्श प्रकार’ का उल्लेख करते हैं क्योंकि इस प्रकार की नौकरशाही एक परम दक्षता के लिए मशीनरी के जैसा है। वेबर के अनुसार, “अनुभव सार्वभौमिक रूप से दिखाता है कि नौकरशाही का यह  प्रकार (रूप) प्रशासनिक संगठन में तकनीकी दृष्टिकोण के आधार पर दक्षता के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने में सक्षम है तथा इस अर्थ में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है।”

मैक्स वेबर: नौकरशाही की सीमाएं

वेबर ने नौकरशाही के महत्व और आवश्यकता पर बल दिया तथा वे इस तथ्य से अवगत थे कि नौकरशाही में शक्ति संचयन की अंतर्निहित प्रवृत्ति पाई जाती है। एल्ब्रो ने भी यही विचार प्रस्तुत किए। वेबर ने सत्ता तंत्र के प्रभाव क्षेत्र को सीमित रखने के लिए तथा विशेषकर नौकरशाही के शक्ति संचय पर अंकुश लगाने के लिए अनेक प्रकार के उपायों व व्यवस्थाओं पर विचार किया है। एल्ब्रो नौकरशाही की पाँच तरह की सीमाओं का वर्णन करते हैं:-

  • अधिशासी मंडल /कॉलिजिअल्टी (Collegiality)
  • शक्तियों का पृथक्करण (The Separation of Powers)
  • गैर पेशेवर/नौसिखिया/अपरिपक्व प्रशासन (Amateur Administration)
  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy)
  • प्रतिनिधित्व (Representation)

 

  • अधिशासी मंडल : अधिशासी मंडल का सिद्धांत एकाधिकार तंत्र के विपरीत है। वेबर का मत है कि लोकतांत्रिक नौकरशाही में आधिकारिक पदानुक्रम के प्रत्येक चरण में केवल एक ही व्यक्ति शामिल होता है, परंतु एक से अधिक व्यक्ति निर्णय लेने में शामिल होते हैं, जिसके कारणवश अधिशासी मंडल सिद्धांत अस्तित्व में आया है। इसके अंतर्गत निर्णयन प्रक्रिया में एक से अधिक व्यक्तियों को शामिल किया जाता है। अधिशासी मंडल नौकरशाही की भूमिका को सीमित करने में सहायक है लेकिन यह निर्णय लेने की गति और जिम्मेदारियों को तय तथा सुनिश्चित करने के मामलों में नुकसान का कारण बनता है।
  • शक्तियों का पृथक्करण : शक्तियों के पृथक्करण का अभिप्राय एक ही कार्य के उतरदायित्व को दो या दो से अधिक संस्थानों के बीच बाँट देना। सभी सम्मिलित संस्थानों को समझौता करना होता है ताकि वह सभी एक निर्णय पर पहुंच सके। ‘शक्तियों का पृथक्करण’ नौकरशाही को एकल निकाय के अंतर्गत निर्णय लेने के एकाधिकार से मुक्त करने में सहायता करता है। हलाँकि ऐसी प्रणाली स्वाभाविक रूप से अस्थिर है।
  • गैर पेशेवर/नौसिखिया/अपरिपक्व प्रशासन : गैर पेशेवर प्रशासन गैर-वेतन भोगी व्यक्तियों के द्वारा चलाया जाता है,जिसके पास स्वय के इतने संसाधन हैं कि वे अपना समय बिना वेतन के प्रसासनिक कार्यों में व्यतीत कर सके। इस प्रणाली में पेशेवरों तथा विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का अभाव था जो आधुनिक समाज की आवश्यकता है।
  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र : प्रत्यक्ष लोकतंत्र नौकरशाही की शक्ति को सीमित करता है, क्योंकि इस व्यवस्था के तहत अधिकारियों को एक विधानसभा द्वारा निर्देशित तथा जवाबदेह बनाया जाता है। यह अल्पावधि हेतू कार्यालयों में बहाली, लाटरी विधि तथा दोबारा बहाल करने की संभावना जैसे अनेक रूपों में प्रकट हो सकता है। लेकिन यह प्रणाली केवल छोटे संगठनों तथा स्थानीय सरकारों के मामलों में ही सफल है।
  • प्रतिनिधित्व : जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि नौकरशाही के प्राधिकार को सांझा/ उपयोग करते हैं। यह नौकरशाही की शक्तियों को सीमित तथा नियंत्रण करने में सहायता प्रदान करते हैं। इस प्रकार की नौकरशाही में प्रतिनिधियों के होने की संभावना होती है। वेबर मानते थे कि प्रतिनिधित्व के माध्यम से नौकरशाही पर अकुंश लगाने की सबसे अधिक संभावना है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वेबर नौकरशाही की अत्यधिक अधिनायकवादी भूमिका के प्रति सचेत थे और इसी कारणवश वे नौकरशाही की भूमिका को सीमित करना चाहते थे। जिसके लिए प्रशासनिक तंत्र को नियंत्रित करने की आवश्यकता थी। उपरोक्त पांच तरीकों में से वेबर नौकरशाही पर नियंत्रण रखने के लिए  ‘प्रतिनिधित्व’ का पक्ष लेते थे।

मैक्स वेबर: नौकरशाही की आलोचनाएं

वेबर की आदर्श प्रकार नौकरशाही को कई विद्वानों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। जो मुख्य रूप से नौकरशाही ढांचे, आधिकारिक मानदंडों तथा प्रशासनिक दक्षता के इर्द-गिर्द घूमती है। जिसमें तर्कसंगतता, विश्वसनीयता तथा व्यक्तित्व की अवधारणा प्रमुख रही।

  • कार्ल जे. फ्रेडरिक के अनुसार, यह शब्द दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि नौकरशाही में कुछ भी आदर्श नहीं होता है। आलोचकों का मत है कि जिन कार्यों में नवाचार तथा रचनात्मकता की आवश्यकता हो उसमें वेबर का नौकरशाही सिद्धांत फिट नहीं बैठता। क्योंकि वास्तव में वेबर का नौकरशाही सिद्धांत कठोर नियमों तथा विनियमों के साथ संगठन के नियमित तथा दोहराव वाले कार्यों में फिट बैठता है।
  • रॉबर्ट के. मर्टन के विचारों में, इसमें कोई संदेह नहीं कि कठोर नियम तथा कानून संगठन में अव्यैक्तिकता, कर्मचारी व्यवहार की जवाबदेही तथा विश्वसनीयता को बनाए रखने में मदद करते हैं। लेकिन इसके अंतर्गत संगठन में कठोर तथा औपचारिक संरचना पाई जाती है। जिससे संगठनात्मक प्रभावशीलता में कमी आती है। वेबर ने विशेषज्ञता तथा विभेदीकरण पर अधिक बल दिया और विकेंद्रीकरण तथा प्रत्यायोजन पर अपना ध्यान केंद्रित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अब संगठन के कार्यों को कठोर नियमों तथा विशेषज्ञता के आधार पर किया जाने लगा।

मर्टन के अनुसार, एक प्रभावशाली नौकरशाही की संरचना अपने सदस्यों से वैधानिक और अनुशासनबद्ध रहने की मांग करती है। नियमों के पालन का परिणाम लक्ष्यों के विस्थापन में होता है। जहाँ साधन मूल्य, अंतिम लक्ष्य बन जाता है। यह अलोचपन तथा औपचारिकतावाद में बदल जाता है। इससे ऐसे परिणामों के आने की संभावना होती है जो अप्रत्याशित और संगठन के लक्ष्यों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते है।

  • फिलिप सेल्जनिक के अनुसार, विकेंद्रीकरण तथा प्रत्यायोजन का परिणाम विभागीकरण एवं संगठन की उप-इकाईयों के बीच हितों के बढे हुए बटवारे के रूप में होता है। फलस्वरूप उप-इकाईयों और संगठन के मध्य लक्ष्यों का विस्थापन (लक्ष्यों का टकराव) में परिणामित होता है।
  • एल्विन गोल्डनर के अनुसार, किसी भी संगठन में सेवा और कार्य से संबंधित नियमो की जानकारी प्राप्त कर कर्मचारी न्यूनतम अपेक्षित कार्य का मानक निर्धारित कर लेते है। परिणास्वरूप उनकी कार्यक्षमता न्यून हो जाती है। उनका कहना है कि यदि प्रबंधकों तथा अधीनस्थों का ध्यान नियमों तथा विनियमों पर अधिक अथवा संगठन के लक्ष्य पर कम हो तो इसके परिणाम यह होगें कि प्रबंधकों तथा अधीनस्थों के मध्य तनाव पैदा होगा, जो सांगठनिक लक्ष्यों के भटकाव की ओर जाता है।
  • विक्टर थॉम्प्सन के अनुसार, प्रबंधक संगठनात्मक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए निचले स्तर के विशेषज्ञों पर निर्भर होते हैं। प्रबंधक संगठन के प्रदर्शन के प्रति असुरक्षा तथा अपनी जवाबदेही से बचने के लिए अत्यधिक कानून बनाने का प्रयत्न करते हैं। वेबर द्वारा नौकरशाही सिद्धांत में बताई गई पूरी औपचारिक संरचना मौजूद है परंतु औपचारिक संबंधों को पहचानने में वेबर असफल हो जाते हैं। ये सभी औपचारिक संबंध संगठन के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • लॉयड रूडोल्फ तथा सुसेन रूडोल्फ ने बताया है कि औपचारिक तर्कशक्ति तथा प्रौद्योगिकी संगठनात्मक दक्षता में योगदान तो दे सकती है परंतु इससे संगठनात्मक संरचना में अलगाव तथा प्रतिरोध के स्रोतों का निर्माण अथवा प्राधिकार के विरुद्ध संघर्ष होने की संभावना अधिक बढ़ सकती है। नौकरशाही प्रशासन के अंतर्गत मौजूद पितृसत्तात्मक तत्वों की दृढ़ता तथा प्रतिधारण संघर्ष को खत्म नहीं किया जा सकता। यद्यपि पितृसत्तात्मक प्रशासन में नौकरशाही सुविधाओं की उपस्थिति इसकी दक्षता तथा प्रभावशीलता को बढ़ा सकती है।
  • टालकट पार्सन्स के अनुसार, यह मानना भ्रान्ति है की संगठन के उच्चाधिकारी तकनीकी रूप से श्रेष्ठ कौशल वाले होते हैं। उनके अनुसार, ऐसा सदैव संभव नहीं है कि जो उच्चाधिकारी आदेश देने के अधिकार रखते हैं वे सभी अपने तकनीकी कौशल में भी उतने अच्छे हों। नौकरशाही का एक अन्य महत्वपूर्ण दोष यह है कि संगठन के कर्मचारियों को स्वयं को व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता अथवा उनके विचारों, मत तथा निर्णय लेने की क्षमता का कोई मूल्य नहीं होता। जिसके परिणाम स्वरुप कर्मचारी स्वयं को निराश तथा हतोत्साहित महसूस करते हैं और समय के साथ-साथ कर्मचारी संगठन के निर्मित नए नियमों का बहिष्कार करना शुरू कर देते हैं या बस उनकी आलोचना करते हैं।

निष्कर्ष

वेबर द्वारा नौकरशाही के आदर्श प्रकार की अवधारणा अनेक आलोचकों की आलोचनाओं का शिकार बनी है। इसके पश्चात् भी नौकरशाही के अध्ययन में बेवर का अद्वितीय स्थान है। आज बड़े पैमाने पर यह सिद्धांत संगठनों में प्रबंधन के लिए सर्वाधिक लाभकारी है। चाहे समाज पूंजीवादी हो या समाजवादी दोनों ही प्रकार के संगठनों में प्रबंधन के लिए वेबर का नौकरशाही सिद्धांत तर्क संगत बैठता है। मुक्त अर्थव्यवस्था के अंतर्गत जहां राज्य की न्यूनतम भूमिका होती है, नौकरशाही का यह सिद्धांत राज्य के कुछ आवश्यक कार्य करता है और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वेबर पहले सिद्धांतकार हैं जिन्होंने नौकरशाही को एक सैद्धांतिक आधार प्रदान किया तथा एक कुशल तरीके से संगठन को बनाए रखने में सहायता की एवं संगठन में इसके महत्व को उजागर किया।

 

संदर्भ सूची

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  • Chakrabarty, Bidyut. 2007.Reinventing Public Administration: The Indian Experience. New Delhi: Orient Longman.
  • Chakrabarty, Bidyut and Mohit Bhattacharya (eds). 2008.The Governance Discourse: A Reader, New Delhi: Oxford University Press.
  • बासु, रूमकी. 2016. लोक प्रशासन बदलते परिप्रेक्ष्य. नई दिल्ली :हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय.
  • मेहता, प्रो. एस. सी. (सम्पादित) 2000. लोक प्रशासन : प्रशासनिक सिद्धांत एवं अवधारणाएं. जयपुर : राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी.
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  • School of Open Learning University of Delhi, Perspectives on Public Administration, Paper VI:New Delhi: University of Delhi

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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