लोक प्रशासन का विकास (Evolution of Public Administration)
परिचय
लोक प्रशासन से हमारा अभिप्राय लोक तथा प्रशासन से है। यहां लोक का अर्थ जनता तथा प्रशासन का अर्थ एक प्रकार का शासन होता है। यह एक ऐसा शासन है जिसका स्वरूप सार्वजनिक होता है और यह सरकारी कार्यों से संबंध रखता है।
जब हम लोक प्रशासन के अर्थ को देखते हैं तो हमारे मन में एक बात आती है कि लोक शब्द को प्रशासन से पहले जोड़ दिया जाता है। अर्थात् लोक शब्द प्रशासन से पहले आया है। जो ये दिखाता है कि लोक प्रशासन का विषय क्षेत्र अब केवल सरकार तथा उसके प्रशासनिक क्रियाकलापों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनका जो क्षेत्र है वो अब पूरे राज्य तक फैला हुआ है। क्योंकि राज्य ही एकमात्र ऐसा संगठन होता है, जो अपने में निवास करने वाले समस्त (सभी) नागरिकों को स्वयं भी समाहित करने की क्षमता रखता है।
लोक प्रशासन – विज्ञान तथा कला
लोक प्रशासन के विचारकों में से कुछ विचारक लोक प्रशासन को एक कला मानते हैं तथा कुछ विचारक इसे एक विज्ञान मानते हैं। जो विद्वान लोक प्रशासन को एक विज्ञान के रूप में देखते हैं। उनका तर्क यह है कि विज्ञान के अंतर्गत ही हम किसी ‘व्यवस्थित ज्ञान’ का अध्ययन कर सकते है। अतः लोक प्रशासन को विज्ञान माना जाना चाहिए। क्योंकि इसमें क्रमबद्धता, नियमितता, सामान्यीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं।
इस दृष्टि में हम देखते हैं कि लोग प्रशासन को विज्ञान माना गया है और इसमें ई. एम. व्हाइट, मैक्स वेबर और लूथर गुलिक जैसे विचारक प्रमुख हैं। इन विचारकों का मत है, कि लोक प्रशासन एक विज्ञान है। क्योंकि इसमें नियमितता होती है और इसमें सिद्धांत निर्माण की व्यापक क्षमता पाई जाती है। वहीं कुछ विचारकों का मानना है कि लोक प्रशासन एक कला है, क्योंकि प्रशासन व्यक्तिगत क्षमता तथा गुणवत्ता से सम्बंधित है। अर्थात् इसमें व्यक्ति किसी भी नियम से परे रहकर अपनी क्षमता के अनुसार प्रशासन की कला को संचालित कर सकता है।
लोक प्रशासन –ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
लोक प्रशासन की कला मानव समाज में प्रशासन के आदिम काल से चली आ रही है। जब व्यक्ति आदिमानव रूप में वन में रहा करता था। उस समय भी मानव में प्रशासन की कला विद्यमान थी। उस समय जो प्रशासन होता था, उसमें व्यक्ति अपनी सामाजिक सुरक्षा के लिए स्वयं से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति या समूह को खुद पर शासन करने का अधिकार देता था और इस प्रकार उस समय प्रशासन की कला संचालित होती थी। लेकिन लोक प्रशासन का एक अध्ययन के पृथक विषय के रूप में उद्भव 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में आरंभ हुआ था और इसी 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में ही लोक प्रशासन विद्या एक स्वतंत्र विषय बनकर उभरा था।
18 वीं शताब्दी से पहले लोक प्रशासन का जो अर्थ था – वह प्रबंध की एक प्रक्रिया थी, जबकि 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में लोक प्रशासन का जो रूप सामने आया उसमें अब लोक प्रशासन ज्ञान की पृथक शाखा के रूप में स्थापित हो गया था। लोक प्रशासन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में हम यह भी देख पाते हैं कि लोक प्रशासन का जो इतिहास है, वह दो भागो में विभाजित किया जा सकता है:-
- लोक प्रशासन का विकास प्राचीन समय में
- लोक प्रशासन का विकास आधुनिक समय में
लोक प्रशासन का विकास प्राचीन समय में
लोक प्रशासन का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना की ‘मानव जीवन’। प्राचीन मिस्र, चीन, भारत और मेसोपोटामिया की नदी-घाटियां, सभ्यता की प्राचीनतम जन्मभूमि थी और इन्हीं घाटियों में लोक प्रशासन ने अपना मूर्त रूप ग्रहण किया।
मिस्र में नियमन की आवश्यकता के कारण ही ‘केंद्रीय कर्मचारी तंत्रात्मक’ प्रशासन की प्राचीनतम व्यवस्था का विकास हुआ। प्रतियोगिता परीक्षाओं द्वारा भर्ती की जाने वाली लोक सेवाओं का विकास चीन में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में ही हो गया था। भारत में प्राचीन काल में प्रशासन की कला ‘राजशासन’, ‘राजतंत्र’ या ‘अर्थशास्त्र’ का अंग समझी जाती थी।
गंगा और सिंधु घाटी सभ्यता के ग्राम, समाज, वहां के जो गणराज्य तथा राजतंत्रात्मक सभी राज्यों में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि उस समय प्रशासन की जो कला थी, वह अर्थशास्त्र तथा राजशास्त्र का अंग समझी जाती थी। रामायण, महाभारत तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में प्रशासन के उन्नत नियमों का वर्णन था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में लोक प्रशासन विषय का विस्तृत तथा व्यवस्थित ढंग से विवेचन किया गया है। इसमें प्रशासन के विविध पदाधिकारियों के कर्त्तव्य, उनके दायित्व और उनको पूरा करने का विवरण दिया गया है। सरकारी अधिकारियों तथा लगान वसूली से जुड़े कर्मचारियों की भर्ती तथा उनके प्रशिक्षण आदि के बारे में भी बताया गया है। लोक प्रशासन को एक संगठित रूप प्राचीन समय में यूनान के नगरों ने भी प्रदान किया था। रोमन शासकों ने लोक प्रशासन को वैधानिक मापदंड तथा स्वरूप प्रदान किया।
मध्यकालीन सामंतवाद ने प्रशासन के क्षेत्र में एक ‘अराजकता पूर्ण’ और ‘विकेंद्रीकरण’ का समावेशन किया। लेकिन उनके खंडित सूत्रों को फ्रांस, इंग्लैंड, प्रशा यानी कि जर्मनी और रूस के नवोदित राजतंत्रों ने पुनः संगठित तथा समायोजित कर दिया। राजा की सत्ता के विस्तार तथा विकेंद्रीकरण के कारण अब राज महलों में कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। जिनमें राज्य प्रशासन के कार्य को मंत्रालय, विभागों और उनके क्षेत्रीय कार्यकलापों में संगठित कर दिया गया। प्रशा संसार का प्रथम देश था, जिसने अपनी लोक सेवा में कर्मचारियों की योग्यता तथा गुण के आधार पर भर्ती की थी। औद्योगिक क्रांति तथा लोक प्रशासन के विकास के कारण प्रशासन के क्षेत्र में तथा उसमें कार्यों के बारे में अनेक जटिल समस्याएं उत्पन्न हो गई थी।
लोक प्रशासन का विकास आधुनिक काल में
लोक प्रशासन का विकास आधुनिक समय में 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण से माना जाता है। इस समय सरकार का कार्य बहुत ज्यादा बढ़ गया था। जिससे यह समस्या सामने आने लगी कि सरकार के कार्यो को किस प्रकार बेहतर ढंग से किया जा सके और इसके लिए प्रशासनिक समस्याओं के अध्ययन तथा उसके अनुसंधान की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। लोक प्रशासन क्रिया के रूप में प्राचीन समय से ही विद्यमान है। लेकिन अध्ययन की एक शाखा ‘A Branch of knowledge or A Subject of study’ के रूप में इसका उदय वर्तमान काल में ही संभव हो पाया। आधुनिक काल में राजनीतिक शास्त्रों के ग्रंथो तथा राजनीतिज्ञों के संस्मरणों में समय-समय पर प्रशासनिक विषय की चर्चा की जाती थी, लेकिन अभी भी लोक प्रशासन को ‘अध्ययन का स्वतंत्र विषय’ नहीं माना जाता था
यहाँ तक की 17वीं शताब्दी में तो लोक प्रशासन शब्द का प्रयोग ही किया जाता था। यूरोपीय भाषाओं में लोक प्रशासन शब्द का प्रचलन 17वीं शताब्दी से आरंभ हुआ था। जब सम्राटों द्वारा लोक कार्यों में प्रशासन तथा उसकी निजी घरेलू व्यवस्था के बीच अंतर किया जाने लगा। आधुनिक लोक प्रशासन का अध्ययन सबसे पहले प्रशा यानी जर्मनी से आरंभ हुआ था। यह लोक प्रशासन को ‘परिवेक्षाधीन लोक कर्मचारियों’ के परीक्षण पाठ्यक्रम के रूप में पेश किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका में 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में विश्वकोष फेडरल लिस्ट का 72वां परिच्छेद प्रकाशित हुआ। उसमें अमेरिका के पहले वित्त मंत्री ‘अलेक्जेंडर हेमिल्टन’ ने लोक प्रशासन के अभिप्राय को तथा क्षेत्र को सुस्पष्ट प्रस्तुत किया था।
लोक प्रशासन के विकास के चरण
लोक प्रशासन के विकास के चरणों को पांच भागों से बांटा गया है –
पहला चरण : राजनीति प्रशासन द्वैतभाव/द्विभाजन का चरण (1887-1926)
प्रथम चरण को राजनीति प्रशासन द्वैतभाव के नाम से जाना जाता है। इसका समय 1887-1926 का था तथा वुडरो विल्सन को इस चरण का जनक माना जाता है। इस चरण में 1887 में वुडरो विल्सन ने ‘The Study of Administration’ पर एक निबंध लिखा था और उनका यह निबंध ‘Political Science Quarterly’ में प्रकाशित हुआ। प्रकाशन की यह घटना इस अध्ययन क्षेत्र की पहली प्रवर्तक घटना मानी गई।
इस निबंध में वुडरो विल्सन कहते हैं कि, “प्रशासन का विज्ञान उस राजनीति विज्ञान के अध्ययन का वह अंतिम फल है, जो आज से लगभग 2200 वर्ष पहले आरंभ हुआ था और यह हमारी पीढ़ी से उत्पन्न था।” वुडरो विल्सन ने अपने इस निबंध की विषय वस्तु का उद्देश्य प्रशासन को राजनीति से अलग एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थापित करना बताया। वुडरो विल्सन ये मानते थे कि कानून के क्रियान्वयन से प्रशासन घनिष्ठ रूप से संबंध रखता है। अर्थात् संविधान को बनाना आसान है, लेकिन उसके अनुसार कार्य करना अधिक मुश्किल है। वुडरो विल्सन ने बताया कि पहले सरकारी कार्यों के अध्ययन में वैज्ञानिक व्यवस्था तथा कानून के अनुशीलन पर बल नही दिया जाता था। लेकिन जैसे-जैसे समय परिवर्तन होता गया तो सामाजिक-आर्थिक जीवन में जटिलताएं बढ़ने लगी और अब ऐसा महसूस किया जाने लगा कि “प्रशासन का एक ऐसा विज्ञान चाहिए जो शासन के पथ को प्रशस्त कर सके।
वुडरो विल्सन को ‘एक विद्या के रूप में लोक प्रशासन’ का जनक माना जाता है। कोलांबिया विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कानून के प्राध्यापक फ्रैंक जे. गुडनॉव द्वारा बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में अपनी पुस्तक ‘Politics and Administration’ प्रकाशित की गई। इसके प्रकाशन के साथ ही गुडनॉव ने एक नए विवाद का सूत्रपात 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में किया। इस विवाद के तहत गुडनॉव ने दो मत रखे :
- एक मत के अनुसार, गुडनॉव ने नीतियों तथा राज्य की इच्छा के प्रकटीकरण को राजनीति का आधार माना।
- वहीं दूसरे मत के अनुसार, राज्यों की इन नीतियों के क्रियान्वयन के कार्य को लोक प्रशासन से संबंधित बताया।
गुडनॉव ने अपने लेख में इस मत को साबित किया कि नीति निर्माण का कार्य नीति के क्रियान्वयन के कार्य से अलग है। अर्थात् नीति निर्माण का कार्य जनता द्वारा निर्वाचित व्यवस्थापिका के द्वारा किया जाता है तथा उनके क्रियान्वयन का कार्य राजनीतिक रूप से तटस्थ, योग्य तथा तकनीकी दक्षता से युक्त प्रशासनिक कार्यों में निपुण शासकीय अधिकारियों द्वारा किया जाता है।
दूसरा चरण : प्रशासन के सिद्धांत का चरण (1927-1937)
लोक प्रशासन के विषय के विकास का दूसरा चरण ‘राजनीति प्रशासन द्वैतभाव’ के चरण पर पुर्न निरीक्षण करने के बाद उद्भव हुआ। इस चरण का समय 1927-1937 का था। इस चरण में मुख्यतःसिद्धांतों पर विशेष बल दिया गया।
इस चरण में ‘मूल्य मुक्त प्रबंध’ विज्ञान की उद्भावना की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इस चरण की शुरुआत 1927 में डब्लू. एफ. विलोबी की पुस्तक ‘Principles of Public Administration’ के प्रकाशन के साथ हुआ। इस चरण की प्रमुख मान्यता थी कि प्रशासन में कुछ सिद्धांत होते हैं और उनका पता लगाना तथा समर्थन करना ये विद्वानों का काम है। इस नई मान्यता को लेकर विलोबी ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Public Administration’ प्रकाशित की। विलोबी के अनुसार, प्रशासन में अनेक सिद्धांत होते हैं और उन्हें क्रियान्वित करने से लोक प्रशासन में सुधार किया जा सकता है।
विद्वान यह भी मानते हैं कि प्रशासन में सिद्धांत होने से ही यह एक विज्ञान है। प्रशासन के सिद्धांत तो सार्वभौमिक, वैधता और प्रासंगिकता वाले होते हैं। इस चरण में हेनरी फेयाल, लूथर गुलिक और उर्विक के नाम प्रमुख है। हेनरी फेयाल की रचना ‘General and Industrial management’ (1949) तथा गुलिक व उर्विक के ‘Papers on the Science of Administration’ जो कि वर्ष 1937 में ही प्रकाशित हुई, उन सभी कृतियों को प्रमुख माना गया। जिनके कारण ये दृष्टिकोण और अधिक आगे बढ़ा। उन्होंने कहा कि “इस शोधपत्र की सामान्य थिसिस यह है कि मानव संगठन के अध्ययन द्वारा ऐसे सिद्धांत पर आगमनात्मक तरीके से पहुंचा जा सकता है। जो किसी भी प्रकार के मानव संबंध की व्यवस्थाओं को नियमित कर सकते हैं।” इस चरण में लोक प्रशासन अपनी प्रतिष्ठा के शीर्ष पर पहुंचा।
तीसरा चरण :प्रशासनिक सिद्धांतों के चुनौती का चरण (1938-1947)
लोक प्रशासन के इस चरण का आरंभ दूसरे चरण में प्रतिपादित यांत्रिक दृष्टिकोण के विरुद्ध हुई प्रतिक्रिया से हुआ। इस चरण में प्रशासन के सिद्धांतों को चुनौती दी गई। उन्हें कहावतें कहा गया। इसी समय सामाजिक शक्तियों और आवश्यकताओं के निरंतर दबाव के कारण उद्योग में भी वैज्ञानिक प्रबंध को व्यापक और मानवीय बनाने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी थी। इसमें सबसे अधिक योगदान प्रसिद्ध हॉथोर्न के प्रयोगों का रहा।
कार्य दलों पर केंद्रित इन प्रयोगों ने कामगारों के उत्पादन पर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक उपकरणों के शक्तिशाली प्रभाव का स्पष्ट प्रदर्शन करके वैज्ञानिक प्रबंध संप्रदाय की जड़ें हिला दी। संगठनात्मक विश्लेषण के इस चरण ने लोगों का ध्यान औपचारिक संगठन में अनौपचारिक संगठन का प्रभाव, नेतृत्व, संगठन के परिवेश में गुटों के बीच पारस्परिक संघर्ष और सहयोग की ओर खींचा। इस चरण में संगठनात्मक चिंतन की मशीनी धारणा की सीमाएं इंगित की गई तथा संगठनों में मानवीय संबंधों के अत्यंत महत्वपूर्ण रूप को दर्शाया।
चौथा चरण :अंत: अनुशासनात्मक अध्ययन पर जोर (1948-1970)
इस चौथे चरण की शुरुआत 1947 में हुई थी। इसमें हर्बर्ट साइमन तथा राबर्ट डहल के नाम प्रमुख है। साइमन की रचना ‘Administration Behaviour’ (1947) थी। यह पुस्तक लोक प्रशासन की विकास की यात्रा में मील का पत्थर साबित हुई।
साइमन के दृष्टिकोण में लोक प्रशासन को मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान से जोड़कर इसके अध्ययन क्षेत्र का विस्तार कर दिया। उन्होंने श्रेणीगत प्रशासन सिद्धांत व राजनीति प्रशासन विभाजन दोनों को ही अस्वीकार कर दिया। साइमन ने दो परस्पर धारणाओं का प्रतिपादन किया।
- एक धारणा प्रशासन का एक विशुद्ध विज्ञान विकास करने में लग गई, जिसके लिए सामाजिक मनोविज्ञान का ठोस धरातल अपेक्षित था।
- दूसरी अवधारणा प्रशासन के मानवीय पहलुओं तथा लोकनीति के आदेशीकरण से संबंधित रही। इसके लिए राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र और समाज विज्ञान का व्यापक ज्ञान अपेक्षित समझा गया।
लोक प्रशासन के विकास का ये चरण ‘संकट का काल’ कहा गया। सिद्धांतवादी विचारधाराओं को साइमान ने चुनौती दी थी।
पांचवा चरण : नवीन लोक प्रशासन तथा नवीन लोक प्रबंध परिप्रेक्ष्य-1971 से आज तक
लोक प्रशासन के विकास के इस चरण में, कई नई प्रवृतियां तथा नए बदलाव होने लगे। जैसे कि, प्रशासन को, किसी संगठन के भीतरी लोगों तथा बाहरी लोगों के बीच एक निश्चित अवधि के भीतर होने वाली अनवरत अंतःक्रिया की प्रक्रिया माना जाने लगा।
लोक प्रशासन तथा निजी व्यवसाय के प्रशासन के अलग-अलग अध्ययनों को एक ही संगठित विज्ञान में बदले में देने की प्रवृति उभरी। जिसके सिद्धांत और धारणाएं लोक प्रशासन और निजी प्रशासन दोनों पर समान रूप से लागू होती है। विविध सामाजिक परिवेश और पर्यावरण में प्रशासनिक व्यवस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन पर जोर दिया गया।
कंप्यूटर के आरंभिक युग में कंप्यूटर तथा अन्य दूसरे यंत्रों की सहायता से मानव मस्तिष्क के निर्णय लेने की तथा समस्याओं को सुलझाने के लिए अंत: अनुशासनात्मक अध्ययन पर जोर दिया जाने लगा। इन सभी नए परिवर्तनों के कारण ही रिग्स ने लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन पर जोर दिया तथा विकासशील देशों के समाजों के अध्ययन के लिए आदेशों एवं नमूनों का निर्माण किया। लोक प्रशासन के विकास के वर्तमान दौर में विभिन्न समाज विज्ञान लोक नीति के विश्लेषण की चिंता से ग्रस्त है। अब लोक प्रशासन के अध्ययन में राजनीतिक तथा नीति निर्धारक प्रक्रियाओं तथा विशेष लोक कार्यक्रमों के अध्ययन पर ध्यान दिया जाने लगा। 1968 में नवीन लोक प्रशासन (NPA) का उदय हुआ। इसमें 1968 के बाद लोक प्रशासन का अध्ययन समृद्ध किया।
नवीन लोक प्रशासन, लोक प्रशासन की ‘मूल्य मुक्त बाजार’ व्याख्या को अस्वीकार करता है। यह नीति तथा राजनीति के प्रशासन के द्विभाजन को भी अस्वीकार करता है। यह संगठन के बारे में यांत्रिकता का विरोधी है। यह मानवीय संबंधों में तथा प्रशासन एवं सामाजिक परिवर्तनों के बारे में नए सृजनात्मक दृष्टिकोण पर विशेष बल देता है। 1980-1990 के दशक में लोक प्रशासन के पारस्परिक प्रतिमान की कमियों के कारण नवीन लोक प्रबंध (NPM) का उदय हुआ। नवीन लोक प्रबंध, नवीन लोक परिप्रेक्ष्य, बाज़ार उन्मुखी लोक प्रशासन आदि नामों से भी जाना जाता है। NPM में 3Es (3Es Efficiency, Economy, Effectiveness-दक्षता, मितव्यमिता, प्रभावशीलता) पर बल दिया जाता है।
निष्कर्ष
अंतत: यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन का विकास अध्ययन के विषय के रूप में कोई सरल प्रक्रिया नहीं थी। बल्कि यह एक बहुत ही जटिल और लंबी प्रक्रिया थी। जिसे कई विकास के चरणों से गुजरना पड़ा और इन चरणों के आधार पर लोक प्रशासन के अध्ययन का एक पृथक विषय के रूप में उद्भव संभव हो पाया।
हमारे राष्ट्रीय जीवन में लोक प्रशासन का केंद्रीय स्थान बन जाने के साथ-साथ वह विद्यालयों तथा अन्य शोध एवं अध्ययन संस्थानों में एक लोकप्रिय विषय बनता जा रहा है। भारत में प्रशासन विषयक अध्ययन का भविष्य बहुत उज्जवल एवं आशापूर्ण है। यदि भारतीय एवं अमेरिकी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाए तो प्रतीत होता है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में इसके व्यवसायिक रूप पर अधिक जोर दिया जाता है। जबकि भारतीय विश्वविद्यालयों में इसका रूप शैक्षणिक विषय का है।
संदर्भ सूची
- Bhattacharya, Mohit. 2008.New Horizons of Public Administration. New Delhi: Jawahar Publishers and Distributors.
- Chakrabarty, Bidyut. 2007.Reinventing Public Administration: The Indian Experience. New Delhi: Orient Longman.
- Chakrabarty, Bidyut and Mohit Bhattacharya (eds). 2008.The Governance Discourse: A Reader, New Delhi: Oxford University Press.
- बासु, रूमकी. 2016. लोक प्रशासन बदलते परिप्रेक्ष्य. नई दिल्ली :हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय.
- मेहता, प्रो. एस. सी. (सम्पादित) 2000. लोक प्रशासन : प्रशासनिक सिद्धांत एवं अवधारणाएं. जयपुर : राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी.
- School of Open Learning University of Delhi, Perspectives on Public Administration, Paper VI:New Delhi: University of Delhi.
“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”
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