प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव/परिणाम
परिचय
प्रथम विश्वयुद्ध 4 वर्ष, 3 महीने और 11 दिन तक चला। विश्व के इतिहास में यह एक भयावह युद्ध था। इससे पूर्व विश्व के किसी भी युद्ध में इतनी संख्या में सैनिकों ने भाग नहीं लिया था। इस युद्ध में विजेता और पराजित दोनों पक्षों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। युद्ध क्षेत्र में मारे जाने वाले सैनिकों की संख्या लगभग 79,40,000 थी और लगभग 1,95,36,000 व्यक्ति घायल हुए। संपत्ति एवं अर्थव्यवस्था को भी इस युद्ध ने भारी क्षति पहुचाई। कुल मिलाकर विभिन्न राष्ट्रों को 35,000 करोड़ पौंड का आर्थिक बोझ उठाना पड़ा।
इस युद्ध में नवीनतम और विनाशकारी हथियारों का इस्तेमाल किया गया। टैंकों, हवाई जहाज़ों तथा पनडुब्बियों के द्वारा भंयकर विनाश किया गया, जिससे आम जन भी अछूता न रह पाया। राजनीतिक दृष्टि से भी विश्वयुद्ध के परिणाम महत्वपूर्ण थे। इसके फलस्वरूप चार साम्राज्यों (जर्मन, ऑस्ट्रिया, रूस, तुर्की) में राजवंशों को उखाड़ फेंका गया तथा सात नए राज्यों का उदय हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव/परिणाम
1. आर्थिक प्रभाव
- आर्थिक विनाश : इस युद्ध में 10 खरब रुपए प्रत्यक्ष रूप में खर्च हुए तथा जान-माल की परोक्ष हानि का तो कोई अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता। इस युद्ध में एक तिहाई खर्च जर्मनी एवं उसके साथी राष्ट्रों का हुआ तथा दो तिहाई मित्र राष्ट्रों का। इस अनियंत्रित खर्चे के कारण युद्ध में शामिल देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और लोककल्याण के कार्य बाधित हुए।
- जनशक्ति का विनाश : सवा चार वर्ष के युद्ध में 79,40,000 मृतकों एवं 1,95,36,000 घायलों ने साबित कर दिया कि यह एक विध्वंसक युद्ध था। इस समयावधि में 7,000 व्यक्ति प्रतिदिन मारे गए। जर्मनी में सबसे ज्यादा 18,08,000 लोग मारे गए, वहीं रूस में सबसे ज्यादा 49,50,000 लोग घायल हुए। दोनों पक्षों की ओर से 6 करोड़ सैनिकों ने युद्ध में भाग लिया।
- युद्ध ऋण : 1914 में दोनों पक्षों के प्रमुख राज्यों का कुल सार्वजनिक ऋण 8,000 करोड़ था, जो 1918 में बढ़कर 40,000 करोड हो गया। इसमें करोड़ों रुपए की संपत्ति नष्ट हुई। जिसके कारण युद्ध में शामिल राष्ट्रों में आर्थिक संकट का खतरा उत्पन्न हो गया। मित्र राष्ट्रों को युद्ध से होने वाले अपार खर्च के लिए संयुक्त राष्ट्र से भारी ऋण लेना पड़ा।
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रभाव : युद्ध काल में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व स्पष्ट हुआ। युद्ध काल में बढ़ते औद्योगिकीकरण से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग राजनीति से भी ज्यादा यथार्थवादी आधार पर आर्थिक क्षेत्र में प्रारंभ हुआ। व्यवसाय अब अनिवार्यतः अंतरराष्ट्रीय हो गया था। परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग तथा नीति निर्धारण के तत्व हर राष्ट्र की विदेश नीति के आधारभूत सिद्धांत बन गए।
- मुद्रास्फीति : विश्वयुद्ध के दौरान दोनों पक्षों का खरबों रुपया खर्च हुआ। यह खर्च किसी उत्पादन कार्य में न लगाकर विनाश में हुआ। इसके साथ ही युद्ध काल में यूरोपीय राष्ट्रों के औद्योगिक क्षेत्रों, प्रतिष्ठानों, संचार एवं यातायात को भारी नुक्सान हुआ। कर्ज की अदायगी हेतु बेहिसाब कागजी मुद्रा जारी कर दी गई, जिससे वस्तुओं के मूल्य आसमान छूने लगे। मुद्रास्फीति ने संपूर्ण यूरोप को आर्थिक संकट में डाल दिया, जिसके गंभीर परिणाम विश्व आर्थिक मंदी के रूप में सामने आये।
- मज़दूर आंदोलन : मजदूर वर्ग की स्थिति पर भी प्रथम विश्वयुद्ध का क्रांतिकारी प्रभाव दृष्टिगत हुआ। युद्धकाल में उत्पादन बहुत वृद्धि हुई। इसलिए मजदूरों की संख्या के साथ-साथ उनकी शक्ति भी बढ़ने लगी। रूस में ‘मजदूरों का राज्य’ स्थापित हो जाने के बाद अन्य देशों के मज़दूर खामोश नहीं रह सकते थे, उनका आंदोलन आक्रामक और बड़ा होने लगा। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का प्रभाव एवं महत्व बढ़ने लगा। मज़दूरी, श्रम के लिए अनुकूल स्थितियां, सुरक्षा, बीमा इत्यादि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार हुआ।
2. राजनीतिक प्रभाव
- निरंकुश राजतंत्रों का अंत : राजनीतिक दृष्टि से भी इस विश्वयुद्ध के परिणाम सामने आये। इसके परिणामस्वरूप जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, रूस, तुर्की, बल्गरिया के राजतंत्रों का अंत हो गया। साथ ही जर्मनी के होहेनजोलर्न, ऑस्ट्रिया-हंगरी के हैप्सबर्ग, रूस के रोमेनाफ और तुर्की के उस्मानिया राजवंशों का भी अंत हो गया।
- लघु राज्यों का उदय : विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में कई छोटे राज्य अस्तित्व में आए, जैसे- ऑस्ट्रिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया, एस्टोनिया, लेटविया, पोलैंड इत्यादि।
- राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसार: लोकतन्त्रों की असफलता से ही युद्ध के पश्चात इटली में फासीवाद तथा जर्मनी में नात्सीवाद का उद्भव एवं विकास हुआ। युद्ध के दौरान राष्ट्रवादिता के सिद्धांत का दोनों ही पक्षों ने समर्थन करने की घोषणा की थी, परंतु इस सिद्धांत को यूरोप के बाहर लागू करने से इन विजेताओं ने इंकार कर दिया। इस तरह पश्चिमी देशों का लोकतान्त्रिक चेहरा बेनकाब हो गया तथा संपूर्ण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में राष्ट्रवादी प्रवृत्ति उदय हुई। अंतरराष्ट्रीय राजनीति अब यूरोप के देशों के विदेशी संबंधों तक ही सीमित नहीं रह गई। अब विश्व के उन देशों को भी विश्व राजनीति में महत्व प्राप्त होने लगा, जिन्हें उपेक्षित समझा जाता था।
- यूरोप में अमेरिकी प्रभाव में वृद्धि : प्रथम विश्व युद्ध के बाद अमेरिका यूरोपीय देशों का साहूकार बनकर उभरा। यूरोप के विभिन्न राष्ट्रों पर उसका एक खरब बीस लाख डॉलर का कर्जा था।अब अमेरिका विश्व के प्रथम दर्जे की शक्ति के रूप में प्रतिस्थापित हो गया।
- समाजवाद का विकास तथा विस्तार : विश्वयुद्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन था, युद्ध के दौरान रूस में हुई क्रांति के परिणामस्वरूप नवीन आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक प्रणाली की स्थापना। रूसी समाजवादी व्यवस्था ने पहली बार समाज में आमूल परिवर्तन से शोषण पर आधारित समाज का अंत कर दिया। धीरे-धीरे विश्व में समाजवादी आंदोलन का तेजी से विस्तार होता है। विश्व की राजनीति में पूंजीवादी साम्राज्यवादी शक्तियों का एकाधिकार समाप्त हो गया।
- राष्ट्रसंघ का निर्माण : विश्वयुद्ध की समयावधि में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व स्पष्ट हुआ। इसलिए व्यापक स्तर पर सहयोग का सूत्रपात हुआ तथा अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन की प्रेरणा एवं पहल से राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई। छोटे स्तर पर परस्पर सहयोग को प्राथमिकता दिए जाने तथा गुप्त संधियों की नीति के घातक परिणामों के कारण ‘खुले कूटनीतिक’ संबंधों एवं संधियों का शुभारंभ हुआ।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
- युवाओं और महिलाओं की दशा में परिवर्तन : मज़दूरों की तरह युवा आंदोलनों को भी बल प्राप्त हुआ। समस्त विश्व में युवा एवं विद्यार्थी अब सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी करने लगे। युद्धकाल की आवश्यकताओं एवं विवशताओं ने महिलाओं को रसोई घर से निकालकर कार्यालयों तथा कारखानों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। इससे महिला स्वतंत्रता आंदोलन को बल प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे महिलाओ को हर क्षेत्र में बराबरी के अधिकार एवं हिस्सेदारी मिलने लगे।
- नवीन संस्कृति का उदय : विश्व युद्ध ने सांस्कृतिक जगत को भी प्रभावित किया। शिक्षा का स्वरूप परिवर्तित होने लगा। साहित्य जगत में नवीनता का सूत्रपात हुआ। छोटे नाटकों एवं कहानियों को बड़े उपन्यासों तथा नाटकों के स्थान पर ज्यादा पढ़ा जाने लगा। साहित्य, कला, संगीत, रेडियो तथा सिनेमा के माध्यम से नवीन संस्कृति का विकास एवं विस्तार हुआ।
- कला का विनाश : इस युद्ध में कला को भारी नुकसान हुआ। पुस्तकालयों, पुरानी कलाकृतियों, ऐतिहासिक और धार्मिक इमारतों आदि को ध्वस्त कर दिया गया।
- वैज्ञानिक प्रगति : विश्वयुद्ध ने असंख्य युद्धकालीन अविष्कारों के माध्यम से दुनिया को नवीन एवं यांत्रिक शक्ति प्रदान की।जहां एक तरफ वैज्ञानिकों ने टैंकों, हवाई जहाज़ों, पनडुब्बियों इत्यादि के रूप में दुनिया को नए हथियार उपलब्ध कराएं, वहीं दूसरी ओर यातायात के साधनों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन किए। नए-नए रासायनिक हथियार बनाएं तो औषधियों की भी खोज की। युद्धकालीन आवश्यकताओं के लिए वैज्ञानिकों द्वारा किये गए त्वरित अविष्कारों से दुनिया में विकास के पहिये को गति मिली।
4. पर्यावरणीय प्रभाव
पर्यावरणीय प्रभाव के विषय में प्रथम विश्वयुद्ध खाई-युद्धनीति के कारण हुए भू-दृश्य परिवर्तनों के कारण सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध हुआ। खाइयों की खुदाई घास के मैदानों को रौंदने, वृक्षों एवं जानवरों के विनाश तथा मिट्टी के मंथन का कारण बनी। खाइयों के संजाल के विस्तार के लिए जंगलों की कटाई से मिट्टी का क्षरण हुआ।
वहीं विषैली गैसों का प्रयोग एक और विध्वंसकारी प्रभाव था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान प्रयुक्त गैसों में आंसू गैस, मस्टर्ड गैस, कार्बोनिल क्लोराइड इत्यादि कुछ प्रमुख है। इन गैसों के प्रयोग से युद्धक्षेत्र प्रदूषित हुए और अधिकांश गैस वायुमंडल में घुल गई। युद्ध के बाद अविस्फोटित गोला बारूद, भूतपूर्व युद्ध क्षेत्र में भारी समस्याएं उत्पन्न करते रहे। अतः सफाई अभियान एक महंगा अभियान था जो अब तक बना हुआ है।
निष्कर्ष
अतः हम कह सकते है कि 1914 का विश्वयुद्ध इतिहास की बहुत भंयकर एवं विनाशकारी घटना थी। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और करोड़ों घायल हुए। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद लोकतान्त्रिक मूल्यों में कमी आई तथा मानवतावादी विचारधारा और समाजवादी विचारधारा को फलने-फूलने का भरपूर अवसर मिला। राष्ट्रवादी विचारधारा का विकास हुआ। इसी प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध के महत्वपूर्ण परिणाम आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में दृष्टिगोचर हुए।
“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”
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