राजपूतों की उत्पत्ति
परिचय
हर्ष की मृत्यु के बाद शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता के अभाव में 7वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक का काल उत्तर भारत के इतिहास में प्रायः ‘राजपूत काल’ के नाम से जाना जाता है। राजपूत शब्द संस्कृत के राजपुत्र का विकृत रूप है, जिसका अर्थ है ‘राजसी रक्त का वंशज’।
राजपूतों की उत्पत्ति के संबंध में इतिहासकारों में पर्याप्त मतभेद है। अधिकांश इतिहासकार राजपूतों को प्राचीन क्षत्रिय वंश की संतान तथा भारत के मूल निवासी मानते हैं। जबकि कुछ इतिहासकार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी जाति और मिश्रित जाति से मानते हैं।
राजपूतों की उत्पत्ति
राजपूतों की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में पर्याप्त मतभेद है, जो निम्नलिखित है:
(1) क्षत्रियों से उत्पत्ति : सी. वी. वैद्य, गौरीशंकर, हीराचंद्र ओझा का मत है कि राजपूत वैदिक क्षत्रियों के वंशज है और इन विद्वानों ने राजपूतों को प्राचीन सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी क्षत्रियों से सम्बन्धित बताया है। इसके साथ ही ओझा का मत है कि आर्यों के रीति-रिवाज और शारीरिक गठन राजपूतों से मिलते-जुलते हैं। आर्यों की तरह राजपूत भी शस्त्र पूजा, सूर्य पूजा, अश्व पूजा आदि करते हैं। इसी प्रकार दशरथ शर्मा ने भी अभिलेखों और सिक्कों के आधार पर राजपूतों को आर्य माना हैं।
(2) अग्निकुण्ड से उत्पत्ति : चन्दबरदाई ने ‘पृथ्वीराजरासो’ में राजपूतों को अग्निकुण्ड से उत्पन्न बताया है। इस सिद्धांत के अनुसार विष्णु के अवतार परशुराम ने समस्त क्षत्रियों को नष्ट कर दिया, जिससे समाज में अव्यवस्था फैल गई। इसके पश्चात ब्राह्मणों ने अपनी रक्षा के लिए चालीस दिनों तक आबू पर्वत पर हवन किया। इस अग्निकुण्ड से चार नायक उत्पन्न हुए तथा उन्होंने परमार, प्रतिहार, चौहान और सोलंकी (चालुक्य) वंशों की स्थापना की।
(3) ब्राह्मणों से उत्पत्ति : रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर ने राजपूतों को ब्राह्मण की संतान माना हैं। बिजोलिया शिलालेख (1170 ई .) में वासुदेव चहमान के उत्तराधिकारी सामन्त को वत्स गोत्र का ब्राह्मण बताया है। इसी प्रकार डॉ. जी. एन. शर्मा ने कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के आधार पर गुहिलवंशी राजपूतों को ब्राह्मणवंशी माना है। कई राजपूत शासकों के अभिलेखों में ब्रह्मक्षत्री, विप्र, द्विज आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है। जिससे यह संकेत मिलता है कि राजपूत प्रारम्भिक काल में ब्राह्मण थे।
(4) विदेशी जातियों से उत्पत्ति : कर्नल टॉड के अनुसार राजपूत सीथियन जाति के वंशज थे। इनका मत है कि शस्त्र पूजा, अश्वमेध, यज्ञों का प्रचलन और बहु-विवाह आदि रीति-रिवाज इन विदेशी जातियों व राजपूतों में समान हैं। इस आधार पर टॉड राजपूतों को विदेशी जाति का वंशज मानते हैं।
(5) मिश्रित जाति से उत्पत्ति – वी.ए. स्मिथ ने राजपूतों को मिश्रित जाति का माना है। स्मिथ के अनुसार बहुत-सी विदेशी जातियाँ शक, कुषाण, सीथियन, हूण आदि भारत आए और यहाँ स्थायी रूप से बस गए। क्षत्रियों जैसे लक्षण होने के कारण भारतीय क्षत्रियों से इनका मेल-मिलाप बढ़ा और वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हुए। कालान्तर में ये जातियाँ भारतीय समाज में मिल गए। इस प्रकार रक्तमिश्रण से राजपूतों की उत्पत्ति हुई।
निष्कर्ष
अतः उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजपूतों की उत्पत्ति के प्रश्न पर विद्वान एकमत नहीं है। किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि राजपूत वंश की उत्पत्ति भारतीय समाज की विभिन्न जातियों और जनजातियों के साथ उन विदेशी आक्रमक जातियों से हुई जो भारत में बस गए और हिंदू धर्म ने उन्हें आत्मसात् कर लिया। यही कारण है कि पूर्व मध्यकाल के कई ग्रंथों में राजपूतों को मिश्रित वर्ण का बताया गया है।
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