हरबर्ट साइमन: निर्णय निर्माण सिद्धांत | Rational Making Theory by Herbert Simon in Hindi

हरबर्ट साइमन: निर्णय निर्माण सिद्धांत

परिचय

निर्णय निर्माण एक ऐसा विषय है, जो प्रशासनिक विचार तथा प्रशासनिक सिद्धांत के संबंध में हाल ही में सामने आया है।  निर्णय के मुख्यतः तीन तत्व हैं:

  1. निर्णय लेते समय व्यक्ति क्या करता है। उसके समक्ष एक समस्या है या फिर वह एक समस्या की पहचान करता है।
  2. उसके सामने कुछ विकल्प होते है। जिन्हें वह स्वयं ढूंढता है या उसे खोजने का प्रयास करता है। वह उन विकल्पों के प्रति विचार करता है।
  3. उन सभी विकल्पों में से उस विकल्प को चुना जाता है जो सबसे अच्छा परिणाम देगा।

साइमन ने कुछ आर्थिक सिद्धांतों को दार्शनिक विचारों से जोड़ा और एक नए आधुनिक निर्णय के सिध्दांत की नींव तैयार की। साइमन के शब्दों में, “हम सहमत हो या न हो लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि निर्णय ही प्रशासन का हृदय होता है।”

निर्णय की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है…

  • ग्लोवर के अनुसार, “चुने हुए विकल्पों में से किसी एक के संबंध में निर्णय करना ही निर्णयन है।”
  • रे. ए. किलियन्स के अनुसार, “निर्णयन विभिन्न विकल्पों के चुनाव की एक सरलतम विधि है।”
  • हरबर्ट साइमन के अनुसार, “निर्णयन में तीन मुख्य अवस्थाओं का समावेश होता है…
  • निर्णय लेने के अवसरों का पता लगाना।
  • संभावित विकल्पों का पता लगाना।
  • उपलब्ध विकल्पों में से चयन करना।

अतः यह कहा जा सकता है कि निर्णयन से आशय है कि निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करना। निर्णयन की प्रक्रिया का अंतिम परिणाम निर्णय है। निर्णयन, निर्णय तक पहुंचने की प्रक्रिया है। इस तरह निर्णय वैकल्पिक उपलब्ध विकल्पों में से सचेतन रूप से चुने गए विकल्प को कहा जाता है। साइमन प्रशासनिक प्रक्रियाओं को (Decisional Process) निर्णयात्मक प्रक्रिया मानते हैं। साइमन ने संगठन की समस्या को उसके सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक संदर्भ में देखा है।

            संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि जटिल तथा परस्पर गुंथी हुई परिस्थितियों के अंतर्गत उपलब्ध विकल्पों में से संगठन की क्षमतानुसार एक श्रेष्ठ विकल्प चुनने तथा उसे प्रभावी ढंग से कार्य का रूप प्रदान करने को निर्णय के नाम से पुकरा जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

लोक प्रशासन में व्यवहारवादी उपागम के प्रमुख स्तंभों में हरबर्ट साइमन का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका जन्म 1916 में विस्कॉन्सिन अमेरिका में हुआ था। सन् 1978 में उन्हें अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

            उनका महत्वपूर्ण योगदान प्रबंध विज्ञान के क्षेत्र में है। वस्तुत: निर्णयन की प्रक्रिया के विश्लेषण पर उनके लिए प्रबंध की समस्त कार्यवाही निर्णय है। हरबर्ट साइमन की रचना ‘Administrative Behaviour’ निर्णयन प्रक्रिया के अध्ययन की दृष्टि से उल्लेखनीय ग्रंथ माना जाता है। उन्होंने निर्णय निर्माण प्रक्रिया में मूल्य वरीयताओं के संदर्भ में मानव व्यवहार का विश्लेषण किया। यही वह केंद्रीय संबद्धता है, जो संगठन और उसके कार्य को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

साइमन की विचारधारा का मूल निष्कर्ष यह है कि संगठन का अध्ययन करने के लिए व्यक्ति को निर्णयन प्रक्रियाओं की जटिल संरचना का अध्ययन करना चाहिए। साइमन के लिए प्रशासन ‘कार्य कराने’ की कला है। उन्होंने उन प्रक्रियाओं तथा विधियों पर बल दिया जिनसे कार्यवाही सुनिश्चित हो। साइमन कहते हैं कि प्रशासनिक विश्लेषण में उस चयन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है जो कार्यवाही से पहले दिया जाना आवश्यक है। निर्णय लेना चयन की वह प्रक्रिया है, जो कार्रवाई आधारित पर होता है।

साइमन ने ध्यान दिया किया कि इस निर्णय निर्माण की प्रक्रिया को भली प्रकार से समझने के अभाव में, प्रशासन का अध्ययन बाधित होगा। क्योंकि यही संगठन में व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करता है।  व्यवहारवादी उपागम में कार्यवाही से पूर्व की प्रक्रिया को समझने का प्रयास किया जाता है। इसे निर्णय लेने की प्रक्रिया के नाम से जाना जाता है।

साइमन का निर्णय निर्माण प्रक्रिया

साइमन के अनुसार संगठन का अध्ययन करने के लिए व्यक्ति को निर्णयन प्रक्रिया की जटिल संरचना का अध्ययन करना चाहिए। साइमन के मतानुसार निर्णय से अभिप्राय तथ्यों तथा मूल्य आदि तत्वों का उचित योग होता है। तथ्य का अर्थ है कि वस्तु क्या है। तथ्य सच्चाई की अभिव्यक्ति है। इसके विपरीत मूल्य का अर्थ पसंदगी से है। मूल्य वरीयता की अभिव्यक्ति है। इसलिए यह तथ्य पर आधारित नहीं होती है। साइमन का मत था कि प्रत्येक निर्णय अनेक तथ्यों तथा अनेक मूल्यों का परिणाम होता है। निर्णय लेने की आवश्यकता तब उत्पन्न होती है, जब व्यक्ति के पास किसी कार्य को करने के लिए बहुत से विकल्प होते हैं परंतु व्यक्ति को छटनी की प्रक्रिया के माध्यम से केवल एक ही विकल्प चुनना होता है। अनेक विकल्पों का अर्थ विभिन्न में से चुनाव करना है।

            उदाहरण; जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तो उसके भिन्न-भिन्न विकल्प होते है। निर्णयकर्ता को अधिकतम लाभ या वंचित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनमें से चयन करना पड़ता है। मानव अपनी समझदारी से ऐसे विकल्प को चुनता है। जिससे अधिकतम सकारात्मक तथा न्यूनतम नकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सके।

साइमन ने अपने निर्णय निर्माण प्रक्रिया के तीन चरण बताएं:

  • अन्वेषण / आसूचना प्रक्रिया (Intelligence Activity) : इस प्रथम चरण के माध्यम से निर्णय लेने के अवसरों की तलाश की जाती है। इसके आधार पर इसमें सबसे पहले देखा जाता है समस्या क्या है। जिसमें कब तथा कहां निर्णय लेने की आवश्यकता है। इस चरण में निर्णय की आंतरिक तथा बाह्य वातावरण की खोज की जाती है। इसमें संगठन की आंतरिक नीतियां तथा प्रबंधकीय व्यवहार एवं चिंतन संगठनात्मक लक्ष्यों, मूल्य व दर्शन के साथ-साथ बाह्य सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक मूल्यों, सामाजिक मूल्यों, सामाजिक प्रारूपों, अभिवृत्तियों आदि का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
  • डिजाइन क्रिया (Design Activity) : इस चरण के माध्यम से समस्या के विकल्पों की खोज की जाती है। साइमन दो प्रकार के निर्णय बताते हैं। कार्यक्रमित निर्णय तथा आकार्यक्रमित निर्णय।

कार्यक्रमित निर्णय : वे निर्णय जो नैतिक प्रकृति के होते है तथा संगठन में जिनकी पुनरावृत्ति होती रहती है। कार्यक्रमित निर्णय कहलाते है।

आकार्यक्रमित निर्णय : वे निर्णय आकार्यक्रमित होते है, जो नवीन असंरचित तथा आकस्मिक प्रकृति के होते है।

  • चयन क्रिया(Choice Activity) : निर्णय प्रक्रिया के तीसरे तथा अंतिम चरण में समस्त उपलब्ध क्रिया विधियों में से श्रेष्ठ क्रिया विधि का चयन किया जाता है। साइमन निर्णय निर्माण प्रक्रिया में तार्किकता या विवेकशीलता का विस्तार से विवेचन करते हैं। साइमन निर्णय निर्माण में तार्किकता की वकालत करते हैं। एक निर्णय इस स्थिति में तार्किक कहा जाता है जब वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उपयुक्त साधनों का चयन किया जाता है।

निर्णय निर्माण प्रक्रिया में तार्किकता के विभिन्न प्रकार

  1. व्यक्तिनिष्ठ तार्किकता : एक निर्णय व्यक्तिनिष्ठ हो सकता है, यदि व्यक्ति के ज्ञान के अनुसार उपलब्धि बढ़े।
  2. सचेत तार्किकता : एक निर्णय सचेतन तार्किक हो सकता है, जबकि साधन तथा साध्य का समायोजन एक सचेतन प्रक्रिया हो।
  3. वैषयिक तार्किकता : एक निर्णय वैषयिक रूप से तार्किक हो सकता है, यदि यह निश्चित मूल्यों को अधिकतम करने का सही व्यवहार करता है।
  4. जानबूझकर स्थापित तार्किकता : एक निर्णय उस समय जानबूझकर स्थापित तार्किकता हो सकता है, जब साधन ओर साध्य के बीच सामंजस्य की स्थापना जान बूझकर की जाए।
  5. संगठनात्मक तार्किकता : एक निर्णय उस समय संगठनात्मक रूप से तार्किक हो सकता है, जब यह संगठन के लक्ष्य की ओर अभिमुख हो।
  6. व्यक्तिगत तार्किकता : एक निर्णय उस समय व्यक्तिगत रूप से तार्किक होता है, जब यह व्यक्तिगत लक्ष्यों की ओर अभिमुखिता रखता है।

            साइमन का विचार था कि कोई भी निर्णय पूर्णता तार्किक नही हो सकता। वे पूर्ण तार्किकता के विचार का खंडन करते है औऱ उसके स्थान पर मर्यादित तार्किकता या सीमित तार्किकता के विचार का प्रतिपादन करते है।

साइमन के निर्णन निर्माण प्रक्रिया की आलोचनाएं

साइमन के आलोचकों का मुख्यत: यह मानना है कि निर्णयन की प्रक्रिया संगठन के लिए महत्त्वपूर्ण है परंतु संगठनात्मक व्यवस्था की व्याख्या के लिए यह अकेली पर्याप्त नहीं है। उनके लिए निर्णयन की प्रक्रिया में भावनात्मक और तर्कपूर्ण दोनों ही तत्त्व का होना आवश्यक है। साइमन निर्णयन के अध्ययन में तथ्य तथा मूल्य के विभेद को स्पष्ट करते है। इस दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा गया है कि ये नए रूप में उपेक्षित राजनीति-प्रशासन विभाजन को पुनः जीवित करता है। यह देखा गया है कि निर्णय करने वाले व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा यह साइमन की मुख्य धारणा से मेल नहीं खाता।

साइमन द्वारा दी गई कुशलता की धारणा भी आलोचना का मुख्य विषय बनी हुई है। कुछ आलोचकों ने इसे आर्थिक पहलू में मिलाने के विरुद्ध तथा कुछ प्रशासन को यांत्रिक स्वरूप देने के विचार से इसका विरोध करते हैं। साइमन की तर्कसंगत की धारणा की भी आलोचना की गई है। अर्गिस का कहना है कि साइमन तर्क शब्दों का प्रयोग करके अंतर्बोध, रूढ़ि तथा निर्णयन में विश्वास की भूमिका को मान्यता नहीं देते। लेकिन सभी आलोचनाओं के बावजूद भी साइमन के योगदान को प्रशासनिक सिद्धांत के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया है।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते है कि साइमन ने अपने निर्णय निर्माण प्रक्रिया के तीन चरण बताए हैं, जिनमें अन्वेषण क्रिया, डिजाइन क्रिया तथा चयन क्रिया शामिल है। उन्होंने माना है कि निर्णय का चयन तार्किक तथा विवेकशीलता पर आधारित होना चाहिए। क्योंकि तभी वह सही निर्णय सही साबित होगा। हमने यह भी देखा है कि कई आलोचकों ने इनकी आलोचना भी की लेकिन इसके बावजूद भी साइमन का योगदान प्रशासनिक सिद्धांत के विकास के लिए बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है।

 

संदर्भ सूची

  • Bhattacharya, Mohit. 2008.New Horizons of Public Administration. New Delhi: Jawahar Publishers and Distributors.
  • Chakrabarty, Bidyut. 2007.Reinventing Public Administration: The Indian Experience. New Delhi: Orient Longman.
  • Chakrabarty, Bidyut and Mohit Bhattacharya (eds). 2008.The Governance Discourse: A Reader, New Delhi: Oxford University Press.
  • बासु, रूमकी. 2016. लोक प्रशासन बदलते परिप्रेक्ष्य. नई दिल्ली :हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय.
  • मेहता, प्रो. एस. सी. (सम्पादित) 2000. लोक प्रशासन : प्रशासनिक सिद्धांत एवं अवधारणाएं. जयपुर : राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी.
  • थोरी, नरेंद्र कुमार. 2002. प्रमुख प्रशासनिक विचारक. जयपुर: आर बी एस ए पब्लिशर्स.
  • School of Open Learning University of Delhi, Perspectives on Public Administration, Paper VI:New Delhi: University of Delhi.

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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