रूसी क्रांति के परिणाम/प्रभाव | Effects of Russian Revolution in Hindi

रूसी क्रांति के परिणाम/प्रभाव

परिचय

रूसी क्रांति (1917) बीसवीं सदी के इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस घटना से पूर्व अमेरिका (1775-1783) में और फ्रांस (1789-1815) में क्रांतियां हुई थीं, किंतु रूसी क्रांति का अपना अलग ही महत्त्व है। 1917 में रूस में जो क्रांति हुई उसने सम्राट के एकतंत्रीय स्वेच्छाचारी शासन का अंत कर समाजवादी शासन व्यवस्था की स्थापना का प्रयत्न ही नहीं किया, अपितु राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी कुलीनों, पूंजीपतियों एवं जमींदारों के वर्चस्व का अंत कर मजदूर, किसान तथा आम जनता की सत्ता भी स्थापित की। क्रांति ने समाजवाद की विचारधारा को संसार में पहली बार मूर्त स्वरूप प्रदान किया। रूसी क्रांति का महत्त्व केवल रूस में क्रांतिकारी, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने हेतु नहीं है अपितु विश्व  इतिहास के भावी घटनाक्रम निर्माण में भी उसके दूरगामी प्रभाव स्पष्टत: दृष्टिगोचर होते हैं। विश्व इतिहास में उसका स्थान एवं महत्त्व उल्लेखनीय है। निम्नलिखित बिंदु रूसी क्रांति के प्रभावों को स्पष्ट करते हैं।

रूसी क्रांति के परिणाम/प्रभाव

1. राजनीतिक परिणाम

  • साम्यवादी शासन व्यवस्था की स्थापना– रूसी क्रांति की सफलता ने मार्क्स की साम्यवादी विचारधारा को मूर्त रूप प्रदान किया। खासकर मजदूर, किसान, दलित आदि वर्गों में यह विचारधारा बहुत लोकप्रिय हुई। रूस में साम्यवादी विचारों की सफलता के पश्चात् इन विचारों को यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका के देशों में प्रसारित करने के प्रयत्न किए गए। इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मार्च, 1919 में मास्को में तृतीय इंटरनेशनल (कोमिन्टर्न) स्थापित की गई।
  • प्रथम विश्व युद्ध का अंत- रूस की नई सरकार ने बिना मित्र राष्ट्रों से सलाह किए जर्मनी के साथ ‘व्रेस्ट लिटोवस्क’ की संधि करके रूस को प्रथम विश्व से अलग कर लिया। इस फैसले का रूस की जनता ने भी भारी समर्थन किया। प्रथम विश्वयुद्ध में सम्मिलित देशों की जनता ने भी अपनी-अपनी सरकारों पर युद्ध बंद करने का दबाव बनाया। यही कारण था कि रूस के युद्ध से अलग होने के आठ महीने पश्चात् ही प्रथम विश्व युद्ध ख़त्म हो गया।
  • विश्व के देशों का दो वैचारिक गुटों में विभाजन- रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप रूस में साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना हुई। अब विश्व के विभिन्न देश दो खेमों पूंजीवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले देश और रूसी साम्यवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले देशों के बीच बट गया था।
  • गुलाम देशों में नवचेतना का संचार– रूस की क्रांति ने एशिया, अफ्रीका के गुलाम देशों को स्वतंत्रता आंदोलन करने के लिए प्रेरित किया। इस क्रांति ने लोकतंत्र को कई नए आयाम भी दिए। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान औपनिवेशिक साम्राज्यवादी महाशक्तियों का दोहरा चरित्र बेनकाब हो चुका था।  साम्राज्यवादी शक्तियां शोषण एवं दमन के आधार पर ही इन राष्ट्रों को अपने नियंत्रण में रखना चाहती थी। क्रांति  के पश्चात रूस में स्थापित नई सरकार ने  साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलनों को खुला समर्थन दिया। पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि, “रूसी क्रांति ने मुझे राजनीति को सामाजिक बदलाव की दृष्टि से सोचने के लिए प्रेरित किया था।”
  • मजदूरों और किसानों का सशक्तिकरण – रूस में अभिजन और साधारण जन में जो अंतर था, रूसी क्रांति ने उसे समाप्त कर दिया तथा वहां आर्थिक एवं समाजिक समानता स्थापित करने का प्रयत्न किया गया। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु  रूसी क्रांति ने विशेषाधिकार वर्ग की शक्ति को शून्य कर दिया। भूमि पर किसानों का स्वामित्व स्वीकार कर लिया गया और उद्योगों में मजदूर वर्ग को सामान भागीदार बनाया गया। परिणामस्वरूप मजदूरों और किसानों  ने क्रांति के लाभ को स्थाई बनाए रखने में सहयोग दिया। इस घटना ने विश्व के अन्य देशों में मजदूरों और किसानों को भी शोषण से मुक्ति हेतु आंदोलन करने के किये प्रेरित किया।
  • रूस का महाशक्ति के रूप में उदय – क्रांति के पश्चात् रूस की नई सरकार ने देश में आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन द्वारा स्थिर शासन प्रदान किया। इस शासन व्यवस्था के बल पर ही रूस इतना सशक्त हो गया था कि वह पूंजीवादी शक्तियों के समकक्ष बन गया। रूस की शक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप उभरे विश्व आर्थिक संकट (1929) ने जहां पूंजीवादी साम्राज्यवादी देशों को बुरी तरह प्रभावित किया वहीं इस महामंदी का असर रूस में नगण्य ही रहा।

2. आर्थिक परिणाम

  • आर्थिक समानता एवं अधिकारों की व्यवस्था– रूसी क्रांति से पूर्व रूस में आर्थिक असमानता थी। मजदूरों और किसानों के परंपरागत शोषण का अंत हुआ तथा उनके कल्याण के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई। सरकार ने जमीदारों से भूमि अधिग्रहण कर पुनर्वितरित किया, उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर निजी व्यापार को सीमित किया तथा उत्पादक श्रम को महत्त्व प्रदान किया। आय के असमान वितरण को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए। 1922 की श्रम संहिता द्वारा मजदूरों को कई सुविधाएं दी गई, जैसे कि प्रतिदिन 8 घंटे का कार्य, 2 सप्ताह का वैतनिक अवकाश, सामाजिक बीमा इत्यादि लागू की गई।
  • औद्योगिक विकास एवं स्थिरता – 1921 में लेनिन ने ‘नई आर्थिक नीति’ अपनाई। सत्ता स्टालिन के पास आते ही उसने औद्योगिक विकास हेतु दो पंचवर्षीय योजनाएं लागू की। इन योजनाओं ने रूस को औद्योगिक और कृषि के क्षेत्र में स्थिरता प्रदान की। नई आर्थिक नीति के अंतर्गत उद्योगों का पुनरुद्धार हुआ एवं उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के साथ-साथ सार्वजानिक उद्योगों के क्षेत्र का विस्तार हुआ।
  • कृषि व्यवस्था का पुनर्निर्माण – नई आर्थिक नीति के अंतर्गत कृषि का पुनर्निर्माण करने पर बल दिया गया। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सबसे पहले फार्मो की विद्यमान संरचना को समाप्त करने का प्रयास किया गया। अमीर किसानों के वर्ग का अंत कर दिया गया। इन बड़े किसानों की संपत्ति मजदूरों तथा छोटे किसानों में बांट दी गई। परिणामस्वरूप इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई एवं किसान सशक्त हुए।

3. सामाजिक परिणाम

  • वर्ग विभाजन का अंत- रूसी क्रांति ने सामाजिक असमानता की जड़ों को भी नष्ट कर दिया था। रूस में जार के शासन काल में समाज दो वर्ग कुलीन वर्ग और सर्वहारा वर्ग में विभक्त था। रूसी क्रांति ने इस वर्ग भेद का अंत कर विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। इसने कारखानों के मालिकों और मजदूरों को समान महत्त्व दिया। धीरे-धीरे समाज में सारे वर्गभेद समाप्त होते गए।
  • धार्मिक सुधार – रूसी क्रांतिकारियों के मन में धर्म के लिए कोई स्थान नहीं था। रूसी क्रांतिकारी चर्च को अपना शत्रु मानते थे, क्योंकि वह जार शासन के समर्थक थे। रूसी क्रांति के दौरान उन्हें चर्च के विरोध का सामना करना पड़ा। इस कारण वे धर्म विरोधी या दूसरे शब्दों में कहें की धर्मनिरपेक्ष हो गए। अत: हम कह सकते है कि, क्रांति ने धर्म को राजनीति से अलग किया तथा धर्म को अब विशुद्ध रूप से निजी मामला बना दिया।
  • शिक्षा संबंधी सुधार -रूसी क्रांति के पश्चात् साम्यवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया गया। स्टालिन का मत था कि, “बौद्धिक क्रांति के बगैर साम्यवादी आर्थिक व्यवस्था की सफलता संभव नहीं है।” साम्यवादी शासन व्यवस्था की स्थापना के पहले महीने में ही मेहनतकश लोग गांवों और शहरों में जनशिक्षा परिषद्, सांस्कृतिक केंद्र, पुस्तकालय, स्कूल, विश्वविद्यालयों के भवन निर्माण आदि की स्थापना में लग गए। जो शिक्षित थे, वे निरक्षरता उन्मूलन अभियान में अपना योगदान देने में जुट गए।
  • महिलाओं की स्थिति में सुधार रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप महिलाओं की पारंपरिक भूमिका में परिवर्तन दिखाई देता है। क्रांति ने महिलाओं के जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार दिए। महिलाओं को पुरुषों के समान मताधिकार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, आजीविका कमाने का अधिकार, सम्पति का अधिकार, विवाह-विच्छेद का अधिकार इत्यादि दिया गया।  यह सभी उपाय मुख्यतः सार्वजानिक जीवन में महिलाओं की ज्यादा से ज्यादा सहभागिता को संभव बनाने की दिशा में प्रेरित था। निसंदेह हम कह सकते हैं कि, रूसी क्रांति पश्चिमी कल्याणकारी राज्य का प्रत्युत्तर थी।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1917 की रूसी क्रांति का विश्व इतिहास पर व्यापक प्रभाव पड़ा। रूस में साम्यवादी शासन व्यवस्था की सफल स्थापना से दुनिया भर के शोषित मजदूरों, किसानों आदि में उम्मीद की एक  नई आशा जागने लगी। इस संदर्भ में दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों में  मार्क्सवादी एवं साम्यवादी विचारधारा की लोकप्रियता बढ़ने लगी। इस क्रम में रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, चीन, क्यूबा इत्यादि देशों में साम्यवादी शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। इस विचारधारा ने पूरे विश्व को दो गुटों में बांट दिया- पूंजीवादी तथा साम्यवादी। शीघ्र ही इन दोनों गुटों में वैचारिक मतभेद के कारण शीतयुद्ध आरंभ हो गया एवं सशस्त्रीकरण की प्रक्रिया तेज़ हुई।

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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