द्वितीय विश्व युद्ध क्यों हुआ, कारण | World war 2 History, Reason in Hindi

परिचय

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्रपति विल्सन ने वर्साय की संधि के अंतर्गत जिन 14 सूत्रों पर जर्मनी को आत्मसमर्पण करने की प्रेरणा दी थी, उन सूत्रों की प्रत्येक जगह अवहेलना की गई। यह संधि जर्मनी को न तो सबक दे सकी और न ही शांति स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुई। वर्साय संधि के ठीक 20 वर्षों बाद दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ जो 6 वर्षों  (1 सितंबर,1939 से 2 सितंबर,1945) तक चला। प्रथम विश्वयुद्ध भयंकर होते हुए भी ख़तरनाक हथियारों के अभाव में अधिक भयानक नहीं था, परंतु द्वितीय विश्वयुद्ध उससे कहीं अधिक भयानक और विनाशकारी सिद्ध हुआ। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वानों का मत है कि प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व में थोड़े समय के लिए शांति स्थापित रही। इनका मानना है पेरिस की संधि से लेकर पोलैण्ड के आक्रमण तक घटीं समस्त घटनाएँ, क्रिया एवं प्रतिक्रियाओं में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण निहित थे। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

  1. वर्साय संधि की शर्तो की कठोरता : प्रथम विश्वयुद्ध के समाप्त होने के पश्चात् युद्ध में शामिल देशों के बीच जो संधि हुई थी उसमें वर्साय की संधि सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी।‌ वर्साय संधि ने द्वितीय विश्व युद्ध का बीजारोपण किया। इस संधि से जर्मनी काफी निराश हुआ तथा जर्मनी की सारी शक्तियों को कुचल देने का प्रयत्न किया गया। जर्मनी पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए, राज्य सीमा कर दी गई, सैनिक शक्ति कमज़ोर कर दी गई, आय के स्रोतों पर अधिकार करके विश्व शांति का सपना देखा जाने लगा। संधि को अपमानजनक मानकर उससे निजात पाने के लिए जर्मन युवा प्रयास करने लगे। इसी समय हिटलर के प्रादुर्भाव ने उनका पथ प्रशस्त किया।
  2. इटली की साम्राज्यवादी नीति – इन दिनों इटली में बेनितो मुसोलिनी का शासन पर अधिकार हो गया था तथा मुसोलिनी ने इटली के साम्राज्य विस्तार के लिए अबीसिनिया पर आक्रमण कर दिया। मुसोलिनी ने 1933 में हिटलर से संधि कर ली। इस प्रकार रोम, बर्लिन, टोक्यो साम्राज्यवाद की स्थापना में एक-दूसरे को पूरी सहायता करने लगे।
  3. जर्मनी में नात्सीवाद – मित्र राष्ट्रों, विशेषत: फ्रांस के हस्तक्षेप के कारण जर्मनी में गणतंत्रीय सरकार ज्यादा दिनों तक स्थिर न रह सकी। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय का लाभ उठाकर अनेक संगठन मज़बूत हो गए। इसमें नाजीवादियों को बहुत अधिक फायदा हुआ। हिटलर के नेतृत्व में नाजी पार्टी का विकास एवं विस्तार हुआ। सन् 1934 ई. तक हिटलर ने राजसत्ता पर पूर्णतः नियंत्रण कर लिया तथा वह जर्मनी का तानाशाह बन गया। उसने वर्साय की संधि की अवहेलना कर सैनिक शक्ति में वृद्धि की एवं उसने राइनलैंड की किलेबंदी की तथा ऑस्ट्रिया, सुडेटनलैंड आदि को अपने अधिकार में ले लिया। वह जर्मनी के पुराने गौरव को पुनः हासिल कर  उसे विश्व शक्ति बनाना चाहता था। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु  उसने शांति के मार्ग को छोड़कर युद्ध के  मार्ग का अनुसरण किया।
  4. जापान का अभ्युदय –  प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान साम्राज्यवादी बन गया था। 1931 में वाशिंगटन सम्मेलन की शर्तों को तोड़ते हुए जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया। इसी समय उसने उत्तरी चीन के प्रदेशों को भी रौंद डाला। जब राष्ट्रसंघ ने जापान को कसूरवार ठहराया तो इसके प्रत्युत्तर में जापान राष्ट्रसंघ से अलग हो गया। 1934 में उसने एशिया के लिए ‘मुनरो सिद्धांत’ की घोषणा की तथा 1936 में जर्मनी से संधि की। आगे चलकर इटली भी इस संधि में शामिल हुआ। जब जापान ने 1939 में दक्षिणी चीन पर आक्रमण किया तो इंग्लैंड, फ्रांस आदि बड़े राष्ट्र सतर्क हो गए और यही सतर्कता द्वितीय विश्वयुद्ध की आधार बना।
  5. स्पेन का गृहयुद्ध तथा धुरी राष्ट्रों द्वारा समर्थन – जनरल फ्रांको ने सन् 1936 ई. में स्पेन का गृहयुद्ध आरंभ कर दिया। हिटलर और मुसोलिनी ने फ्रांको को खुला समर्थन एवं सहयोग दिया। इसके फलस्वरूप सन् 1939 ई. में स्पेन की प्रजातांत्रिक सरकार पूरी तरह पराजित हुई और वहां फ्रांको की तानाशाह सरकार स्थापित हुई। फ्रांको की इस विजय से फासिस्ट राष्ट्रों की शक्ति बढ़ गई और वे ब्रिटेन तथा फ्रांस की खोखली धमकियों नजरंदाज़ करने लगे।
  6. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संकट –  1930 में विश्व में एक बड़ा आर्थिक संकट आया, जिसका प्रत्येक देश की आर्थिक व्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नकारात्मक असर पड़ा। इस आर्थिक संकट के फलस्वरूप राष्ट्रों में नि:शस्त्रीकरण की भावना की समाप्ति हुई और वे शस्त्रों की अंधी होड़ में लग गए। जर्मनी में इसका भयावह प्रभाव देखने को मिलता है, इसके कारण लगभग सात लाख व्यक्ति बेरोजगार हो गए। इस आर्थिक संकट ने जर्मनी में नाजीवाद के विकास में सहायता प्रदान की। इस आर्थिक संकट का फायदा उठाकर ही जापान ने 1931 में मंचूरिया पर चढ़ाई कर दी तथा 1935 में अबीसीनया पर इटली का आक्रमण भी इसी आर्थिक मंदी का एक अप्रत्यक्ष परिणाम था।
  7. पश्चिमी राष्ट्रों की तुष्टीकरण की नीति – ब्रिटेन और फ़्रांस जैसे देशों ने तुष्टीकरण की नीति अपना रखी थी। ब्रिटेन यूरोप में शक्ति संतुलन सिध्दांत का पालन करते हुए फ़्रांस को एक खतरे के रूप में देखता था। साथ ही ब्रिटेन जर्मनी, इटली तथा जापान को साम्यवादी देश सोवियत संघ के विरुद्ध लगाना चाहता था। प्रत्येक बार जब ये देश आक्रमक सैन्य नीति अपनाते थे, तब ब्रिटेन तुष्टीकरण की नीति अपना लेता था।  वही दूसरी तरफ फ़्रांस का दृष्टिकोण बिलकुल उल्ट था। फ़्रांस चाहता था की वर्साय संधि का जर्मनी से कठोरता से पालन करवाया जाये। अतः ब्रिटेन और फ़्रांस की तुष्टीकरण की नीति भी द्वितीय विश्वयुद्ध का एक प्रमुख कारण बनीं।
  8. अल्पसंख्यक जातियों का असंतोष – वर्साय की संधि और उसके साथ ही बाद में होने वाले अन्य संधियों के द्वारा विभिन्न अल्पसंख्यक जातियां अस्तित्व में आई। राष्ट्रपति विल्सन ने शांति संधियों का आधार ‘राष्ट्रीय आत्म निर्णय के सिद्धांत’ को बनाना चाहा, किंतु सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सैन्य और अन्य कारणों से इस सिद्धांत का कठोरतापूर्वक क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाया। अतः कई अल्पसंख्यक जातियां विदेशी शासन के अंतर्गत रह गई, जिसके कारण उनमें असंतोष और भय उत्पन्न हो गया। हिटलर ने इस असंतोष का लाभ उठाया, उसने पश्चिमी शक्तियों से सौदेबाजी की और ‘अल्पसंख्यक पर अत्याचार’ के बहाने से ऑस्ट्रिया और सुडेटनलैंड प्रदेश पर कब्जा कर लिया और पोलैंड पर भी आक्रमण कर दिया। जिससे द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत हो गई।
  9. राष्ट्र संघ की दुर्बलता –  पेरिस सम्मेलन द्वारा विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ का निर्माण किया गया था। परंतु इसके निर्माण का उद्देश्य पूरा न हो सका एवं आरंभ में ही राष्ट्र संघ दुर्बलता का शिकार हो गया। छोटे-छोटे राज्यों के पारस्परिक मतभेदों तथा झगड़ों को यह सुलझा न सका। राष्ट्र संघ के विरोध के बावजूद जर्मनी, इटली, जापान ने आक्रमणकारी नीति का अनुसरण किया तथा राष्ट्र संघ उनके विरुद्ध कार्यवाही करने में असफल रहा। अतः भविष्य में युद्ध को रोकना राष्ट्र संघ के लिए असंभव बात थी।
  10. साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा – अब तक अनेक देशों में उद्योगों का विकास हो चुका था। फैक्ट्रियों में उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा था। इससे वस्तुओं की खपत के लिए ब्रिटेन, फ्रांस आदि ने अनेक उपनिवेश स्थापित किए थे। अन्य देशों का झुकाव इस ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगा। इससे परस्पर संघर्ष  की स्थिति उत्पन हो गई। इस तनाव ने बढ़ते-बढ़ते विश्वयुद्ध का रूप धारण कर लिया।
  11. दो प्रतिद्वंदी सैन्य गुटों का प्रादुर्भाव – जिस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध से पहले पूरा विश्व दो विरोधी सैन्य गुटों में बट गया था,  ठीक उसी प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व भी समूचा विश्व दो परस्पर शत्रु सैन्य खेमों में बट गया था। एक ओर इटली, जर्मनी तथा जापान जैसे असंतुष्ट राष्ट्रों की रोम-बर्लिन-टोक्यो धुरी थी तो दूसरी तरफ ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ तथा अमेरिका जैसे मित्र राष्ट्रों ने मिलकर एक सुदृढ़ संधि संगठन की स्थापना की। इन दो गुटों के उदय के साथ ही तनाव में और वृद्धि हुई।
  12. नि: शस्त्रीकरण के लक्ष्यों में भटकाव – अंतरराष्ट्रीय तनाव ने विभिन्न राष्ट्रों को  अधिक से अधिक और आधुनिक हथियार निर्माण करने की दिशा की ओर अग्रसर किया। फ्रांस को जर्मनी से सदैव डर लगा रहता था। अतः फ्रांस ने हथियारों का निर्माण तीव्रता से किया। सैन्य शक्ति की वृद्धि में ब्रिटेन भी लाखों पौंड की धन राशि खर्च करने लगा। जर्मनी इस क्षेत्र में सबसे अधिक सचेत था। वर्साय संधि का प्रतिशोध लेने के लिए हिटलर अपनी सैन्य शक्ति में निरंतर तीव्रता से  वृद्धि करने लगा। राष्ट्र संघ  नि:शस्त्रीकरण के अपने उद्देश्य को लागू नहीं करा सका। अब युद्ध आवश्यक हो गया था।
  13. युद्ध का तत्कालीन कारण (पोलैंड पर जर्मनी का आक्रमण) – उपरोक्त कारणों ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि निर्मित की। इन सभी घटनाक्रम के बीच जर्मनी के हवाई जहाजों ने 1 सितंबर,1939 को पोलैंड पर एकाएक हमला किया। ब्रिटेन तथा फ्रांस ने 3 सितंबर,1939 को हिटलर को अंतिम चेतावनी दी तथा जर्मनी से कोई उत्तर न मिलने पर दोनों देशों ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। इस घोषणा के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हुआ।

निष्कर्ष

अतः हम कह सकते हैं कि वर्साय की संधि से द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण हुआ। इटली, जर्मनी, जापान एवं स्पेन में अधिनायकवाद की स्थापना, अल्पसंख्यक जातियों में असंतोष, आर्थिक संकट, गुटबंदी, नि:शस्त्रीकरण की असफलता, पश्चिमी राष्ट्रों की तुष्टीकरण की नीति आदि कारणों की वजह से विश्व के देशों के बीच तनावपूर्ण परिस्थियाँ उत्पन्न हुईं। ऐसी परिस्थितियों में युद्ध अनिवार्य हो गया था। जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण तो केवल एक बहाना था। अगर संक्षेप में कहा जाये तो, इस युद्ध का मूल कारण प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियां थी।

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