स्वामी विवेकानंद: आदर्श समाज | Swami Vivekanand: Ideal Society in Hindi

स्वामी विवेकानंद: आदर्श समाज (1863-1902)

Swami Vivekanand: Ideal Society

परिचय

स्वामी विवेकानंद एक समाज सुधारक से अधिक एक धर्मगुरु के रूप में जाने जाते हैं। आधुनिक भारत के निर्माण में स्वामी विवेकानंद का महत्वपूर्ण स्थान सदैव ही रहेगा। उन्होंने देशभक्ति और राष्ट्रवाद की जो संकल्पना प्रस्तुत की थी, उनकी यह भूमिका तो स्वार्थ पूर्ण और दूषित भावनाओं से कई मिलों दूर थी। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को एक आदर्श रूप प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत में समाजवादी विचारों की अभिवृद्धि में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ था। उनके पिता विश्वनाथ ने पाश्चात्य साहित्य का विस्तृत अध्ययन किया था। उनके पिता द्वारा ही नरेंद्रनाथ यानी स्वामी विवेकानंद को पाश्चात्य ज्ञान और दूसरे देशों की संस्कृति में रुचि उत्पन्न हुई थी। उनके माता-पिता द्वारा ही उनके भीतर चिंतन, जिज्ञासा, ईमानदारी तथा निर्भीकता को कूट-कूट कर भरा गया था। उन्होंने मैट्रिक पास करने के बाद प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और एक वर्ष बाद ही उसे छोड़कर, उन्होंने स्कॉटिश मिशन बोर्ड द्वारा स्थापित जनरल असेंबली कॉलेज में दाखिला ले लिया। उनकी बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व ने अध्यापकों और छात्रों दोनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वे साहित्य दर्शनशास्त्र व इतिहास की पुस्तकों में अधिक रुचि रखते थे। स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली बार मुलाकात सन् 1881 में हुई थी। स्वामी विवेकानंद का सारा जीवन घोर कर्म की अप्रतिम धारा से भरा हुआ था। उनके जीवनकारों का कहना है कि विवेकानंद के आध्यात्मिक विकास क्रम में जीवन के इस कार्य में दो समानांतर विचारधाराएं क्रियाशील प्रतीत होती हैं। एक तो यह है कि चेतना अवस्था में परम सत्य को जानने की और समाधि में निमग्न होने की उत्कट इच्छा का होना। सन् 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् ही उन्होंने भारत भ्रमण के द्वारा अपने विचारों को जन जन तक पहुंचाने का प्रयास किया।

विवेकानंद के विचारों पर हमें शंकराचार्य, ब्रह्म समाज, रामकृष्ण परमहंस, प्लेटो, कांत, हीगल, हरबर्ट स्पेंसर, ह्यूम, लॉक, मील आदि के विचारों का प्रभाव देखने को मिलता है। सन् 1893 में विवेकानंद शिकागो चले गए, जहां पर अमेरिका में चल रही विश्व धर्म संसद में उन्होंने भाग लिया। उनके भाषण को सुनकर लोग उनसे बहुत प्रभावित हुए और सभी ने ज़ोरदार तालियों की गूंज द्वारा उनका स्वागत किया। इसके पश्चात् तीन वर्षों तक उन्होंने वेदांत के दर्शन एवं धर्म की शिक्षा को अमेरिका और इंग्लैंड के जन-जन तक फैलाया। जिसके पश्चात् कुछ समय बाद वे भारत वापिस आ गए। यहां पर वापिस आकर उन्होंने रामकृष्ण मठ एवं मिशन की स्थापना 1897 में की और 1898 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की। सन् 1899 के दौरान वे फिर से पश्चिमी देशों की यात्रा पर चले गए। सन् 1900 में वे भारत वापिस आ गए, जिसके पश्चात् सन् 1902 में सेहत संबंधी समस्याओं के चलते उनकी मृत्यु हो गई।

 

विवेकानंद के आदर्श समाज (Ideal Society) पर विचार

स्वामी विवेकानंद का दर्शन मुख्यतः विश्व दर्शन पर आधारित था। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय इतिहास की यदि प्रशंसा की है तो साथ ही साथ उन्होंने भारतीय समाज को प्रभावित करने वाली समस्याओं का भी वर्णन किया है। उन्होंने भारतीय समाज में गरीबी, अंधविश्वास और हिंदू समाज में जातीय भेदभाव को समाज की प्रमुख समस्या माना। स्वामी विवेकानंद ने मुख्य रूप से मानवता के विचार की ओर अधिक बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि विश्व की किसी भी संपदा से अधिक मूल्यवान मनुष्य होता है। यहां तक कि मनुष्य जीवन को समझने के लिए ईश्वर को भी मनुष्य का ही अवतार लेना पड़ा था। उनका मानना था कि मनुष्य में दैवीय शक्ति होती है और वह एक प्रकार से ईश्वर का प्रतिबिंब होता है। जितना ही एक मनुष्य अंदर से पवित्र होगा, उतना ही उसके अंदर की दैवीय शक्ति उसके बाहर की ओर झलकती है।

वह अद्वैतवाद में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि मनुष्य की आत्मा एक सार्वभौमिक ब्रह्मांड की शक्ति का भाग होती है। यह आत्मा ईश्वर का अंश हैI ईश्वर शाश्वत होता है और यह आत्मा सदैव ही जन्म एवं मृत्यु से परे होती है। यह आत्मा अजर अमर होती है। हमें अमूमन यह लगता है कि हमारे अंदर परिवर्तन आ रहे हैं लेकिन सत्य यह होता है कि हमारे चारों ओर की प्रकृति बदलती रहती है, जिस कारण से हमें परिवर्तन महसूस होता रहता है। रूसो, जॉन लॉक एवं मैरी वोलस्टोनक्राप्ट की भांति ही स्वामी विवेकानंद भी पूर्णता की बात करते हैं। उनका कहना है कि यदि मनुष्य अपने भीतर की अच्छाइयों पर लगातार काम करे, तो उसे वह वहाँ तक लेकर जा सकता है जहाँ पर उसे पूर्णता प्राप्त होगी। प्रकृति ने जन्म के साथ ही हमें नैतिक गुण, कारण की भावना, पवित्रता, बुद्धि प्रदान की है, लेकिन हमें जीवनभर इसमें वृद्धि, अभ्यास व पूर्णता लाने का प्रयास करते रहना चाहिए। यदि हम ऐसे नहीं करेंगे तो हमारे अंदर के यह सभी गुण हमेशा ही सोए रहेंगे, इसलिए इन्हें जगाने का सदैव प्रयास करते रहना चाहिए। केवल इसे ही हम कर्म के नाम से जानते हैं और इसके द्वारा ही हम अपने भीतर की पूर्णता को प्राप्त कर पाएंगें। यह पूर्णता ही मनुष्य की आत्मा के लिए अत्यंत आवश्यक है। जब हम इस पूर्णता को प्राप्त कर लेते हैं तो हम स्वयं से ही स्वशासन, आत्म-निपुणता, आत्म-साक्षात्कार करने लगते हैं और जब मनुष्य को इन सब ही की प्राप्ति हो जाती है तो हमारी आत्मा परमात्मा के साथ मिलकर एक हो जाती है। यही सच्चे मायनों में असल स्वतंत्रता होती है।

उनका मानना है कि धर्म का अर्थ है जब हम स्वयं की आत्मा को पूर्ण बना देते हैं। धर्म आत्म-अनुभूति का माध्यम होता है। स्वयं को ईश्वर या रचयिता में विलीन कर देना ही धर्म होता है। ईश्वर ब्रह्मांड की हर चीज़, हर कण में विद्यमान हैI हर धर्म एकता में विश्वास रखता है, सभी धर्मों के जीवन का उद्देश्य एक ही है। उनका मानना था कि सामाजिक कुरीतियां या बुराइयां धर्म के कारण समाज में नहीं आई हैं बल्कि धर्म व सामाजिक व्यवस्था दोनों ही एक- दूसरे से अलग हैं। सामाजिक व्यवस्था विशेष रूप से उपयोगिता, स्थिरता, स्व-आरक्षण के लिए होती है। समाज में सुधार या परिवर्तन के लिए जरूरी नहीं है कि आप स्वयं का धर्मांतरण कर लें बल्कि धर्म को त्यागने की बजाय उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इसी कारण से ही, वे पंडिता रमाबाई के धर्म परिवर्तन के विरोधी रहे थे। वे मानते थे कि धर्म में ही स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व निहित होता है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, आत्मा के तीन गुण होते हैं :

  1. सत्व (Sattva) : शुद्धता, अच्छाई, ज्ञान
  2. रज (Rajas) : गतिविधि, जोश, इच्छा
  3. तम (Tamas) : आलस्य, विनाश, अंधकार

विवेकानंद का कहना था कि इन तीन तत्वों द्वारा ही समाज का निर्माण होता है और यह सामाजिक विभाजन हमें प्रत्येक समाज में दिखाई देता है। इसी प्रकार से प्लेटो ने भी आत्मा के तीन तत्वों की बात कही थी- तृष्णा या क्षुधा (appetite), साहस (spirit), बुद्धि या ज्ञान (Reason)। सामाजिक व्यवस्था में इन चारों वर्गों यानी कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा क्षुद्र का सामाजिक विभाजन अत्यंत ही आवश्यक है लेकिन धीरे-धीरे इनका सामाजिक व्यवस्था में अपभ्रंश होने लगा।

विवेकानंद का मानना था कि धर्म कहीं बाहर से नहीं आता है बल्कि यह व्यक्ति के भीतर ही होता है। धार्मिक विचार मनुष्य की रचना में ही सन्निहित है और वास्तव में चाहकर भी मनुष्य धर्म का त्याग तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि उसका शरीर, मन, मस्तिष्क एवं जीवन चल रहा है। जब तक मनुष्य में सोचने की शक्ति रहेगी, तब तक उसका यह संघर्ष चलता ही रहेगा। किसी न किसी रूप में तब तक यह धर्म उसके जीवन के साथ ही रहेगा। उनका कहना था कि सामाजिक व्यवस्था में विभाजन की आवश्यकता तब तक होती है, जब तक कि इसमें कोई वैकल्पिक व्यवस्था न आ जाए।

विवेकानंद का मानना था कि कोई भी समाज केवल शक्ति के बल पर ही शक्तिशाली बन सकता है। एक सन्यासी होने के बावजूद भी वे लोगों को निर्भीकता का संदेश देते थे, जिस कारण से ही युवाओं के बीच उन्हें अत्यंत ही पसंद किया जाता था। उनके कई भाषणों और लेखों में हमें उनके एक आदर्श समाज के अवधारणा के पर्याप्त सुराग मिलते हैं। उन्होंने कहा कि समाज एक ऐसा महानतम स्थान होता है, जहां पर सर्वोच्च सत्य व्यवहारिक बन जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि आदर्श समाज को इस तरह से संगठित किया जाना चाहिए जिसमें व्यक्ति की दिव्यता का अनुभव किया जा सके। व्यक्ति की समानता को विवेकानंद के आदर्श समाज की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक माना जाता है। उनका मानना था कि सभी मनुष्य अपनी प्राकृतिक क्षमता के आधार पर समान नहीं होते हैं तथा शारीरिक बनावट के आधार पर और सामाजिक स्तर के आधार पर समरूपता को प्राप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन आदर्श समाज द्वारा ही इसमें कमी लाने का प्रयास किया जा सकता है। सभी प्रकार के मतभेदों को समाप्त करने के लिए मृत्यु और विनाश को लाना होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने विचार को श्रेष्ठ तरीके से साकार कर सकता है।

विवेकानंद के अनुसार जब एक आदर्श समाज की शुरुआत होती है तो उसे इस आधार पर स्थापित होना चाहिए, जो कि निम्नलिखित रूप से है-

  1. धार्मिक राज्य (Theocratic state)
  • सकारात्मक पहलू: विज्ञान की नींव, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष।
  • नकरात्मक पहलू: ज्ञान का एकाधिकार, विशेष धार्मिक कर्मकांड, पुरोहित की शक्तियां बढ़ना।

 

  1. सैनिक राज्य (Military state)
  • सकारात्मक पहलू: कला और संस्कृति की महान उन्नति, ज्ञान का विस्तार।
  • नकरात्मक पहलू: क्रूर, अत्याचारी शासन, बहुत सीमित अधिकार।

 

  1. वाणिज्यिक राज्य (Commercial state)
  • सकारात्मक पहलू: ज्ञान का विश्वव्यापी विस्तार, वितरण की भावना, व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता।
  • नकारात्मक पहलू: मूक शोषण, राजनीतिक समानता, लेकिन निचले स्तर पर असमानता का संचालन करना।
  1. समाजवादी राज्य ( Socialist State)
  • सकारात्मक पहलू : आर्थिक समानता, अधिक वितरणात्मक न्याय, शिक्षा का समावेशी विस्तार।
  • नकारात्मक पहलू : संस्कृति में कमी, असाधारण प्रतिभा में कमी, भीड़तंत्र का बढ़ना।

विवेकानंद के आदर्श समाज के राज्य के अनुसार, यह वह राज्य होगा, जहां पर सभी नागरिक एक समान होंगे। जहां पर कि सभी ‘ब्राह्मण’ अर्थात् ज्ञानी होंगे यानी कोई भी न तो निम्न जाति से होगा और न ही कोई उच्च जाति से होगा एवं सभी को शिक्षा व शिक्षित होने का अधिकार प्राप्त होगा। जिसमें उपरोक्त चार नियमों में से प्रत्येक के आधार पर ब्राह्मण या पुरोहित को शासन का ज्ञान, क्षत्रिय को सैन्य शासन की संस्कृति, वैश्य को वाणिज्यिक शासन की वितरण प्रणाली और शूद्र को शासन के समतावाद के लिए अक्षुण्ण रखा जाएगा तथा सामाजिक बुराइयों को समाप्त कर दिया जाए। जहां पर हर जगह पर केवल प्रेम और सद्भाव हो। आदर्श समाज वह है जिसमें उच्चतम सत्य व्यावहारिक हो जाता है और जिसमें मनुष्य को दिव्यता का एहसास होता है। जहां पर एक व्यक्ति अन्य लोगों की भलाई के लिए त्याग करता है। जहां पर पश्चिम की वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति के साथ पूर्व के अध्यात्मिकता और मूल्य प्रणाली का संयोजन हो। जहां पर अल्पसंख्यकों पर कोई अत्याचार न हो। साथ ही जहां बल, धन, बुद्धि, जन्म या अध्यात्मिकता का किसी को भी कोई विशेषाधिकार प्राप्त न हो। जिस प्रकार से हृदय द्वारा संपूर्ण शरीर में खून का संचालन होता है उसी प्रकार से ज्ञान रूपी धन का संचालन निरंतर होना चाहिए, उसे रुकना नहीं चाहिए क्योंकि यदि वह रुक जाएगा तो उससे समाज में विद्रोह उत्पन्न हो सकता है। एक ऐसा समाज जहां पर व्यक्ति वास्तव में स्वतंत्र और समान हो। इस समाज में व्यक्ति को विकास के समान अवसर प्राप्त हो सकें। हर कोई दूसरे साथी को भाई के रूप में मानता हो, जहां पर एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना हो और गरीबों और दलितों की सेवा को भगवान की सेवा के रूप में माना जाए।

स्वामी विवेकानंद ने विश्व बंधुत्व के विचार पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मनुष्य दिव्य है और व्यक्तियों के बीच में किसी भी प्रकार का कोई मौलिक अंतर नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि जिस प्रकार से 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा की जाती है, उसी प्रकार से हमें गरीबों की सेवा करनी चाहिए। यदि मनुष्य में ईश्वर का अंश है तो उसका केवल यह अर्थ हुआ कि इस सेवा द्वारा ही हम ईश्वर की सेवा कर रहे हैं।

किस प्रकार से इसे समाज में साकार किया जा सकता है….?

  • शिक्षा द्वारा इसे साकार किया जा सकता है खासतौर पर यह शिक्षा जन-जन तक पहुंचाई जाए।
  • समाज में सदियों से चले आ रहे सामाजिक भेदभाव को कम करने के लिए पिछड़े वर्ग को राज्य दवारा कोटा (Reservation) एवं छात्रवृत्ति (scholarship) दी जाए ताकि इसके द्वारा ही सकारात्मक रूप में सामाजिक भेदभाव को कम किया जा सके।
  • निम्न वर्ग या निम्न जाति को उच्च जाति या वर्ग के बराबर ही उसी समान स्तर तक ले जाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए समाज में सामाजिक समानता को लाना ही पड़ेगा।
  • धर्म के वास्तविक सार को साकार करने वाली सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता है। केवल इसके द्वारा ही लोग धर्म के वास्तविक अर्थ को जान सकेंगे और धर्म के नाम पर चल रहे विभिन्न आडंबरों से बच सकेंगे।
  • किसी भी व्यक्ति के उत्थान के लिए आत्मविश्वास का होना महत्वपूर्ण पहलू है। यह आत्मविश्वास व उत्थान केवल ज्ञान के मार्ग द्वारा ही पैदा हो सकता है।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद ने आधुनिक आदर्श समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, जनता को ऊंचा उठाना, जन शक्ति, नारी शक्ति, अस्पृश्यता उन्मूलन, हिंदू मुस्लिम एकता, विश्वव्यापी साक्षरता और अनौपचारिक शिक्षा, इन सभी क्षेत्रों के लिए आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान दिया। विवेकानंद ने भारतवासियों के समक्ष आदर्श समाज की आध्यात्मिक रूपरेखा को प्रस्तुत किया। जिसमें विभिन्न समस्याओं पर सभी का ध्यान आकर्षित किया एवं साथ ही साथ इसका उन्होंने समाधान भी बताया। उनका चिंतन धर्म और दर्शन पर आधारित था। वह समाजशास्त्री नहीं थे किंतु फिर भी मैक्स वेबर ने ‘Essays In Sociology’ में माना कि उन्होंने भारतीय समाज की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने का प्रयत्न किया तथा ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों के मध्य लंबे समय तक चले आ रहे संघर्ष की ओर ध्यान आकृष्ट किया। वर्तमान में बेलूर मठ के अतिरिक्त रामकृष्ण मठ और मिशन की 135 शाखाएं कार्य कर रही हैं। इनमें से कुछ भारत में व अन्य बांग्लादेश, श्रीलंका, सिंगापुर, फिजी, मारीशस, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, अर्जेंटीना, इंग्लैंड, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, नीदरलैंड और रूस में वेदांत के ज्ञान का विश्व में प्रचार-प्रसार द्वारा परचम लहरा रही हैं। रामकृष्ण मिशन द्वारा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, अनाथालय आदि वेदांत शिक्षा के केंद्र भारत और विदेशों में चलाए जा रहे हैं। स्वामी विवेकानंद का उद्देश्य जनसाधारण में जागृति लाकर राष्ट्र व जनता को जागृत करना था।

महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. How did Vivekananda revitalized Indian society? Discuss. (2017)

        विवेकानंद ने किस प्रकार भारतीय समाज को पुनर्जीवित किया है? विवेचना कीजिए।

  1. Discuss Vivekananda’s views on ideal society. (2018)

       आदर्श समाज पर विवेकानंद के विचारों की चर्चा कीजिए?

  1. Critically examine Swami Vivekananda’s views on ideal society. (2019)

       आदर्श समाज पर स्वामी विवेकानंद के विचारों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए?

संदर्भ सूची

  • त्यागी, रूचि (सं) (2015). ‘आधुनिक भारत का राजनितिक चिंतन: एक विमर्श’, हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय: दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली.
  • N. Roy, (1998). ‘Traditions and Innovation in Indian Political Thought, Ajanta Publishers, Delhi.
  • नागर, डॉ. पुरुषोतम (2019). आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनितिक चिंतन’, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर.
  • School of open learning University of Delhi, ‘Indian Political Thought-II’: Paper-XIV, New Delhi: University of Delhi.
  • Complete Works of Swami Vivekananda, Vol. II, p. 84. Hereafter, Complete Works.
  • Varma V. P. (1991). ‘Moden Indian Political Thought Vol. II’, Lakshmi Narayan Agarwal Educational Publishers, Agra.

  

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